‘सुरक्षा रुझानों और रिपोर्टिंग ऑफ क्राइम‘ (एसएटीएआरसी) के एक हालिया सर्वे के अनुसार, दिल्ली में 51% लोगों का मानना है कि महिलाओं से जुड़े अधिकतर अपराध उनके पड़ोस में ही होता है। जबकि यही सोच मुंबई 16%, चेन्नई में 5% और बेंगलुरु 21% लोगों की हैं।
इन आंकड़ों को इकट्ठा करने के लिए आईडीएफसी संस्थान ने मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु और चेन्नई में 20,597 घरों के लोगों के बीच यह सर्वे किया।
इस सर्वे के अनुसार, चार शहरों में सुरक्षा के आधार पर लोगों से पूछा गया कि क्या वे पिछले एक साल में किसी अपराध के पीड़ित थे और पुलिस के साथ उनका कैसा व्यवहार रहा है।
सर्व के अनुसार, दिल्ली में 87% लोग रात 9 बजे के बाद अपनी कामकाजी और अकेली घर से बाहर निकली लड़कियों/महिलाओं के घर वापस आने की चिंता करने लगते हैं। यही प्रतिशत, बेंगलुरु में 54%, चेन्नई में 48% और मुंबई में 30% है।
जबकि कुछ लोगों ने यह भी कहा कि उन्हें चिंता नहीं होती जिनमें दिल्ली में इसका प्रतिशत 1% है और चेन्नई और बेंगलुरु में 8% मुंबई में 13% है।
वहीँ पुरुषों को लेकर दिल्ली में करीब 95% लोग 11 बजे के बाद चिंतित होने लगे लगते हैं। बेंगलुरु में इसका प्रतिशत 83%, चेन्नई में 84% और मुंबई में 60% हैं।
माना जाता है कि चिंता करना और सावधानी रखना हमारे भारतीय जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। जिसे सिखाया नहीं जाता बल्कि यह जीवन का एक हिस्सा बन कर परिवारों के साथ रहता है।
सर्वे में परिवारों ने माना कि बाहर उनके साथ कुछ बुरा न हो इसलिए वह घरों में ज्यादा रहने की सलाह देते हैं लेकिन आंकड़े बताते हैं कि हमारे पड़ोसी और जानने वाले ही अधिक अपराध करते हैं।
परिवार के लोग और कामकाजी लोग अपने घर की महिला सदस्यों के लिए और महिला कर्मचारियों के लिए एक सुरक्षित माहौल चाहते हैं जिसके लिए वह एक निश्चित समय पर आने–जाने का निर्णय लेते हैं ताकि रास्तों में, बसों में, ट्रेनों में और अन्य वाहनों में उन्हें भीड़ मिले या किसी का साथ मिल सके। लेकिन यह हमेशा जरुरी नहीं हो पाता इसलिए जरुरी है कि समाज की सोच को बदला जाये, महिलाओं को एक मुक्त समाज मिले और कानून का सहयोग मिले।
स्टोरी और फोटोसाभार: इंडियास्पेंड
दिल्ली के 87% लोग चाहते हैं कि उनके घरों की महिलाएं रात 9 से पहले घर आ जाएँ
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