सैकड़ों लोग काम ढूँढने आतें हैं दिल्ली से कोई 30 किलोमीटर दूर नॉएडा फेज़ 2 में, जहां कपड़े बनाने वाली फैक्ट्रीज की तादात काफी ज्यादा है। इन कारखानों के गेट पर ‘आवश्यकता है’ का बोर्ड लगा रहता है और दर्जी, कारीगर, कपड़े इस्त्री करने वाले, मरम्मत करने वाले लोगों को यहां हमेशा से काम मिलता आ रहा है। मगर नोटबंदी की जबरदस्त मार इन फैक्टरियों पर पड़ी है, और ये बोर्ड अब खाली हैं।
राष्ट्रीय असंगठित क्षेत्र उद्यम आयोग के अनुसार हिंदुस्तान की श्रमशक्ति का 92 फीसदी असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले इन पुरुषों और महिलाओं से पूरा होता है। ये देश के सकल घरेलू उत्पाद में आधे का योगदान करते हैं। इन श्रमिकों के पास ना तो काम की कोई सुरक्षा होती है और ना ही वे श्रम नियमों के लाभ का आनंद उठाते हैं। इनमें से 79 फीसदी आधिकारिक तौर पर गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं।
70 लाख श्रमिकों के साथ, वस्त्र और परिधान उद्योग भारत में दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। (पहले स्थान पर कृषि है।) वस्त्र और परिधान उद्योग में काम करने वाले करीब 80 फीसदी श्रमिक अस्थायी रुप से काम करते हैं। इन श्रमिकों को ज्यादातर नकद में ही भुगतान किया जाता है, जिसकी फिलहाल देश में भारी कमी हो रही है। हालांकि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर उर्जित पटेल ने 7 दिसंबर, 2016 को कहा है कि देश भर में मुद्रा की कमी नहीं है।
वस्त्र और परिधान उद्योग के लिए जनवरी से नवंबर का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। इन तीन महीनों में ये छोटे-छोटे परिधान निर्यातक पश्चिम के देशों में होने वाले बसंत उत्सव के लिए कपड़े तैयार करते हैं। लेकिन यह वर्ष कुछ अलग है। विमुद्रकरण से नकद की कमी हुई है। इससे लघु उद्योग इकाइयों के लिए परेशानी खड़ी हो गई है।
हम बता दें कि लघु उद्योग के क्षेत्र में तैयार कपड़ों की इकाइयों का 78 फीसदी योगदान है। तैयार कपड़ों की इकाइयों में श्रम शक्ति का करीब 80 फीसदी कैजुअल या दिहाड़ी श्रमिक के रुप में रखा जाता है। इनका पूरा भुगतान नकद में ही होता है।
लघु उद्योग इकाइयों के मालिकों का कहना है कि काम कम करने के अलावा कोई चारा नहीं है। क्योंकि व्यापार की मौसमी और अप्रत्याशित प्रकृति और इसकी अर्थव्यवस्था में स्थायी स्टाफ और श्रम के भुगतान के लिए औपचारिक तरीके की गुंजाइश नहीं है।
छोटे से मध्य उद्यमी, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते हैं, कहते हैं कि औसत नवंबर-दिसंबर में उनके पास कम से कम 1,500 कामगार होते हैं। इनमें से 75 फीसदी अस्थायी होते हैं। नोटबंदी के बाद इन्हें कामगारों की संख्या घटा कर 500 करनी पड़ी है।
फोटो और लेख साभार:इंडियास्पेंड