एक दशक पहले से भारत में अधिकतर बच्चे समेकित बाल विकास सेवाओं (आईसीडीएस) के तहत एक या एक से अधिक सेवाएं ले रहे हैं. यह बच्चों के पूरक पोषण, विशेष रूप से कुपोषित बच्चों को और प्रारंभिक शिक्षा के परिणामों में सुधार लाकर बाल मृत्यु दर को कम करने के लिए पूरी दुनिया में अपनी तरह का एक मात्र प्रारंभिक कार्यक्रम माना जाता है।
दशकों से आईसीडीएस का लाभ करीब 9.93 करोड़ बच्चों को मिला और यह कार्यक्रम देशभर के 14 लाख आंगनवाड़ी केंद्रों (एडब्ल्यूसी) के माध्यम से चलाया जा रहा है। मौजूदा स्थिति में भारत में लगभग 14 लाख आंगनवाड़ी केंद्र हैं, जिनमें 28 लाख कार्यकर्ता और सहायिकाएं हैं। ये हर रोज 7.73 करोड़ बच्चों और 1.77 करोड़ गर्भवती–धात्री महिलाओं को साल में 300 दिन 6 सेवाएं देने का काम करती हैं। इन छह सेवाओं में पोषणाहार, स्वास्थ्य–पोषण शिक्षा, संदर्भ सेवाएं, टीकाकरण, वृद्धि निगरानी और स्कूल पूर्व शिक्षा के काम शामिल हैं।
भारत में वर्ष 1975 से एकीकृत बाल विकास कार्यक्रम चल रहा है। इसका मकसद है देश में कुपोषण, बाल मृत्यु, मातृत्व मृत्यु में कमी लाना और बच्चों–महिलाओं के विकास के लिए माहौल बनाना। इसने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई भी है। यह कार्यक्रम मुख्य रूप से हर बसाहट में आंगनवाड़ी केंद्र के जरिये संचालित होता है, जिसमें आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और आंगनवाड़ी सहायिका केंद्रीय भूमिका निभाती है।
लगभग 1.4 मिलियन आँगनवाड़ी कार्यकर्ता इस कार्यक्रम में शामिल हैं।
भारत के 11 राज्यों और चार केंद्र शासित प्रदेशों ने 2015 से आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और आंगनवाड़ी सहायकों को अतिरिक्त वेतन में कोई बदलाव नहीं करने का ऐलान नहीं किया है, 2017 के एक अध्ययन के मुताबिक, 19 मिलियन कुपोषित लोगों के लिए देश में/विश्व में सबसे ज्यादा आईसीडीएस ही एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं इन सबके बाद भी उन्हें एक आदर्श वेतन नहीं मिलता।
वर्तमान स्थिति में केंद्र और राज्य सरकारों से मिले–जुले योगदान से आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को जो मानदेय मिलता है, वह किसी भी किस्म की न्यूनतम मजदूरी से कम है, यहां तक कि अकुशल मजदूरी से भी कम! सरकार ने बजट 2018 में आंगनवाड़ी सेवाओं के लिए 15,240 करोड़ रुपये (लगभग 2.3 अरब डॉलर) आवंटित किए हैं, जो कि 2013 में 15,800 करोड़ रुपये (लगभग 3 अरब डॉलर) के बजट आवंटन से 600 करोड़ रुपये कम है।
लेख और फोटो साभार: इंडियास्पेंड