बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती इस बार खूब चर्चा में रही। भारतीय जनता पार्टी और हिंदूवादी संघठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ इसमें सबसे आगे रहे। तो क्या संघ और भाजपा में बाबा साहेब के लिए अचानक प्रेम उमड़ पड़ा है? ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। बल्कि बाबा साहेब के बहाने दलितों को जीतने की तैयारी शुरू हो गई है।
जयंती वाले दिन भाजपा ने बिहार में अपना चुनाव प्रचार अभियान शुरू किया। यहां इस साल के आखिर में चुनाव होने हैं। भाजपा इस दिन को चुनकर यह संदेश दलितों के बीच देना चाहती है कि हम दलित हितैषी हैं। ऐसे में जबकि बसपा अपने वजूद के लिए लड़ रही है। उसके कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। बागी हुए इन नेताओं पर भी भारतीय जनता पार्टी की नजर है। इन्हें दलित चेहरा बनाकर जनता के सामने पेश करके चुनावी जंग जीतने का मन भी भाजपा बना चुकी है।
भाजपा और संघ के नेता कह रहे हैं कि हमारी ही तरह अंबेडकर भी राष्ट्रवादी थे। लेकिन वह उन बातों को नहीं गिनाना चाहती जिसमें अंबेडकर और भाजपा के बीच भारी विरोध है। जैसे गाय के मांस पर केंद्र ने रोक लगा दी है जबकि अंबेडकर के अनुसार गाय का मांस हमेशा भारत में खाया जाता रहा है। हिंदू धर्म में छाए छुआछूत से दुखी होकर अंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाया था। लेकिन धर्म छोड़ने की बात पर भाजपा उलटे कहती है कि बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म में कई समानताएं हैं। सवाल यह उठता है कि अगर उन्हें हिंदू धर्म में कोई बुराई नजर ही नहीं आती थी तो फिर इस धर्म को छोड़ा ही क्यों? अंबेडकर का हाथ पकड़कर भाजपा दलितों के वोट हथियाना चाहती है।
दलितों तक पहुंचने का अंबेडकर बने सहारा
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