पिछले तीन हफ्तों से उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर, शामली, बागपत, सहारनपुर और मेरठ जिलों में जो दंगे हुए हैं, ऐसी हिंसा राज्य में कम से कम दस साल से नहीं हुई है।
सरकारी आकलन के मुताबिक पचास हज़ार लोगों ने अपने घर-गांव छोड़कर पलायन किया है, और पचास से कम लोग मारे गए हैं। इन जिलों के प्रशासन का यह भी मानना है कि अब माहौल शांत है और बेघर लोगों को सुरक्षा देने और रहने-खाने की व्यवस्था करने में, उनको अपने गांव वापस पहुंचाने में प्रशासन की भागीदारी रही है। शामली जिले के डी.एम. से जब उनकी भूमिका के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि आकलन हम करें।
शामली और मुज़फ्फरनगर जिलों के कैंप में लोगों के डर और गुस्से को देख, अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार ने अपनी जि़म्मेदारी दंगों के समय नहीं निभाई, और अब दंगों के असर को संभालने में उनकी भूमिका पर गंभीर सवाल है। कैम्पों में लोगों की देख रेख, उनकी सुरक्षा, कानूनी मदद – समुदाय के लोग ही कर रहे हैं, सरकार की न के बराबर भागीदारी है। कैंप में लोगों के बयान से यह स्पष्ट है कि सरकार के मरे हुए और घायल लोगों के आंकड़ों में कोई सच्चाई नहीं है। सैकड़ों लोग गायब हैं और सरकार के पास न तो इसके आंकड़े हैं, न ही उन्हें ढूंढने के प्रयास शुरू किए गए हैं।
लोगों के घर और सामान की जगह मुआवज़े की बात प्रधानमंत्री से लेकर जिला अधिकारी कर रहे हैं – पर थानों में दर्ज एफ.आई.आर. की संख्या बहुत कम है, और नुक्सान का आकलन शुरू भी नहीं हुआ है। इस स्थिति में लोग अपनी जि़ंदगी को दोबारा बनाने की हिम्मत किससे लें?