पश्चिम उत्तर प्रदेश में मुज़फ्फरनगर और शामली जिलों में हालात सुधर रहे हैं – राज्य सरकार और मुख्यधारा मीडिया चाहेगा कि देश इस ही बात पर ध्यान दे और इसे ही सच मान ले। पर सच्चाई तो ये है कि हज़ारों बेघर परिवारों की समस्याएं समाप्त होने से कोसों दूर हैं।
शामली के जोगी खेड़ा कैंप में एक महिला ने कैंप में ही अपने बच्चे को जन्म दिया। सीमित मात्रा में खानपान होने के कारण दोनों मां और बच्चे में खून की कमी है। मुज़फ्फरनगर के शाहपुर ब्लाक के एक बड़े कैंप में छह गर्भवती महिलाएं हैं। इस कैंप में रोज़ाना तीन हज़ार लोग खाना खाते हैं। सरकार की ओर से कैंप में नाप तोल कर आटा, चावल, दाल और सब्जी के नाम पर आलू आता है। ऐसे में इन महिलाओं के लिए कोई खास पोषण नहीं है।
दिन भर बच्चे कैंप में इधर उधर फिरते हैं। हफ्तों से बच्चों की पढ़ाई रुकी हुई है और गांव लौटने का कोई अतापता नहीं है। कुछ लोगों ने अपने बच्चों को रिश्तेदारों के पास भेज दिया और कुछ ने बालिग लड़कियों की जहां रिश्ता मिला वहां शादी करा दी।
इस समय ज़रूरत है कि राज्य सरकार ठोस रूप से कैंपों में रह रहे परिवारों को विश्वास दिलाए और ज़मीनी स्थिति का मुआइना करे। साफ-सफाई, पोषण और महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए व्यवस्था करना ज़रूरी है। आने वाले समय में एक बड़ा काम है दंगों से प्रभावित हज़ारों लोगों का पुनरवास क्योंकि कई लोगों के घर जला दिए गए और गांवों में अब भी असुरक्षित माहौल बना हुआ है।
मुज़फ्फरनगर और शामली के कैंपों में सैकड़ों बच्चे और उनके परिवारों की ज़िदगी इन कैंपों में सिमट कर रह गई है। इन सांप्रदायिक दंगों और सरकार की उदासीनता ने कितने ही लोगों को एक असुरक्षित वातावरण में ढकेल दिया है।
दंगों के बाद भी संघर्ष
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