दंगे कभी अचानक नहीं होते। कई मुद्दों पर होने वाले छोटे- छोटे टकराव दंगों का रूप लेते हैं। त्रिलोकपुरी दंगों में भी ऐसा ही हुआ। दंगा कैसे हुआ? इस सवाल के जवाब में अलग-अलग कहानियां सुनाई जा रही हैं। लेकिन एक बात तय है कि मस्जिद से दो सौ मीटर की दूरी पर रखी माता की चैकी विवाद का ठोस कारण बनी। चैकी लगानेवाले लोगों के अनुसार सुनाए गए किस्से को मानें तो कूड़े के ढेर को हटाकर वहां चैकी रखने का कारण दूसरे समुदाय के लोगों को वहां कूड़ा डालने से रोकना था। चैकी और मस्जिद में लगे लाउडस्पीकरों ने भी विवाद में मजबूत भूमिका निभाई। सवाल उठता है कि प्रशासन से इसकी शिकायत क्यों नहीं की गई?
दूसरा सवाल जो देश स्तर पर उठाया जाना चाहिए वह यह है कि लाउडस्पीकर के कारण कई सांप्रदायिक हिंसा हो चुकी हैं। तो क्या लाउडस्पीकर को लेकर कड़े नियम नहीं बनने चाहिए? भारत जैसे देश में जहां हर मोहल्ले में हर धर्म के लोग रहते हैं, ऐसे में किसी मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर या फिर गुरुद्वारे में लगे लाउडस्पीकरों को उचित कैसे ठहराया जा सकता है?
तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण सवाल है कि क्या यह दंगे रुक सकते थे? तो स्थानीय लोगों का जवाब हां में मिल रहा है। विवाद शुरू होते ही दोनों समुदाय के लोगों ने पुलिस को फोन किए। पर पुलिस आनाकानी करती रही। दंगों को काबू पाने के लिए सैकड़ों पुलिस और सेना की टोलियां लगाई जाती हैं। लेकिन कोई विवाद दंगे का रूप न लें इसके लिए पुलिस प्रशासन चैकन्ने क्यों नहीं रहते। दंगों की जांच के समय पुलिस से भी इस पर सवाल करने चाहिए।
दंगों के पीछे का सच
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