जिला ललितपुर, ब्लाक बिरधा, गांव बालाबेहट में लगभग पन्द्रह लोग टीबी की बीमारी से पीड़ित हैं। यहां के ज्यादातर लोग पहाड़ में पत्थर तोड़ने और खदान की क्रेशर मशीन में काम करते हैं क्योंकि घर का खर्च चलाने का यहीं एक मुख्य जरिया है। क्रेशर से उड़ने वाली धूल ने इस गांव के लगभग पन्द्रह लोगों की जिन्दगी तबाह कर दी है।
प्रीतम सहरिया का कहब है कि मुझे चार-पांच साल से टीबी की बीमारी है। ललितपुर में इलाज कराया है, प्राइवेट इलाज कराने में दस पन्द्रह हजार रूपये खर्च हो चुके हैं। घनश्याम का कहना है कि यहां के सरकारी अस्पताल में दवा कराने जाते हैं। हम खदान में काम करते हैं। खेती न होने के कारण लोग मजबूरी में खदान में काम करते हैं। दलयित सहरिया का कहना है कि जब जांच कराई है तब पता चला है कि टीबी की बीमारी है, अब सरकारी अस्पताल में दवा करा रहे हैं।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के डाक्टर आनिल वर्मा का कहना है कि यहां के लोग पत्थर का काम करते हैं इसलिए टीबी की बीमारी हो जाती है और लोग लापरवाही भी करते हैं और सही तरीके से दवा भी नहीं कराते हैं। पन्द्रह दिन तक खांसी, वजन कम होना, बुखार आना, और छाती में दर्द होना टीबी की बीमारी के लक्षण हैं। जिला अस्पताल के मेडिकल अफसर डाक्टर धीरेन्द्र का कहना है कि गांव के लोगों का आशा कार्यकर्ता में माध्यम से इलाज कराया जाता है।