तीन तलाक देने को अपराध के दायरे में लाने वाला कानून लोकसभा में 28 दिसम्बर को पास हो गया।
सदन में इस बिल पर विस्तृत चर्चा हुई और यह बिल बगैर किसी संशोधन के पास हुआ। सभी संशोधन खारिज कर दिए गए थे। बिल को लेकर कुछ संशोधन रखे गए थे, जिनमें दो संशोधन ओवैसी ने आगे बढ़ाए थे। जबकि, एक संशोधन बीजू जनता दल के भर्तृहरि महताब ने बढ़ाया था। वहीं, कांग्रेस की ओर से सुष्मिता देव और सीपीआईएम के ए.संपत ने संशोधन आगे बढ़ाए थे, जिन्हें संसद में नकार दिया गया। अब यह बिल राज्यसभा में जाएगा।
इससे पहले तीन तलाक को प्रतिबंधित करने और विवाहित मुस्लिम महिलाओं के अधिकार सुरक्षित करने से संबंधित ‘मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2017 28 दिसम्बर को सरकार ने लोकसभा में पेश किया था। विधेयक पर सदन में चर्चा भी हुई। केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस विधेयक को पेश किया था।
प्रसाद ने कहा कि अगर मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में खड़ा होना अपराध है तो यह अपराध हम 10 बार करेंगे। हम इसे वोट के तराजू में नहीं तोल रहे। हम इसे सियासत के चश्मे से नहीं, बल्कि इंसानियत के चश्मे से देखते हैं।
मंत्री के जवाब के बाद सदन ने असादुद्दीन ओवैसी, एन के प्रेमचंद्रन, जॉइस जॉर्ज, बी महताब, ए.संपत, अधीर रंजन चौधरी और सुष्मिता देव के संशोधनों को नकार दिया गया। सदन ने ध्वनिमत से मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2017 को मंजूरी दे दी।
विधेयक की धारा तीन और चार में प्रस्ताव किया गया है कि किसी व्यक्ति द्वारा उसकी पत्नी के लिए, शब्दों द्वारा, चाहे बोले गए हों या लिखित हों या इलेक्ट्रॉनिक रूप में हो या किसी अन्य रीति में हो। चाहे कोई भी हो, तलाक की उद्घोषणा अवैध एवं अमान्य होगी। जो कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को इस प्रकार से तलाक की उद्घोषणा करता है, उसे तीन वर्ष तक कारावास और जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
प्रसाद ने कहा कि इस विधेयक को समान नागरिक संहिता से जोड़ा जा रहा है। यह कानून ऐतिहासिक है और उच्चतम न्यायालय द्वारा ‘तलाक ए बिद्दत’ को गैरकानून घोषित किए जाने के बाद मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए इस सदन द्वारा इस संबंध में विधेयक पारित करना जरूरी हो गया है।
उन्होंने इस संबंध में कुछ सदस्यों की आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा कि यह कानून किसी मजहब से जुड़ा नहीं बल्कि नारी सम्मान से जुड़ा हुआ है।