बांदा जिला के चारौं तहसील (बांदा, बबेरू, नरैनी अउर अतर्रा) मा 16 जुलाई 2013 का तहसील दिवस मनावा गा। तहसील दिवस मा चार सौ आठ दरखास आईं, जेहिमा सिर्फ सैंतिस दरखास ही निपट पाईं। अगर दूर दराज गांव से आये मड़इन के सिर्फ सैंतिस दरखास का ही निपटारा होई पावा, तौ तहसील दिवस मनावैं से कउन फायदा है?
हर महीना के पहिले अउर तीसर हफ्ता के मंगलवार के दिन तहसील दिवस मनावा जात है। सब विभाग के ज्यादातर अधिकारी तहसील दिवस मा एकै साथै बइठ के समस्या सुनत हैं। कुछ समस्या का निपटारा तुरतै होई जात है, पै ज्यादातर दरखासैं उंई विभागन का भेज दीन जात है जउन विभाग से उंई जुड़ी होत हैं। प्रशासन आपन जान मा बहुतै नींक काम करत है। अधिकारी कहत भी हैं कि जनता का एक खास दिन, एक साथै कइयौ विभाग के अधिकारी एकै जघा मिल जात हैं। मड़इन का हर विभाग के अधिकारिन मा आसानी होत है। अगर सच्चाई देखी जाय तौ ज्यादातर अधिकारी हेंया भी नहीं मिलत आय। वहै तहसील दिवस मा ज्यादातर अधिकारी रहत हैं जबै डी.एम. अउर एस.पी. रहत हंै। अगर हम 16 जुलाई 2013 के तहसील दिवस के दिन के बात करी तौ चारौ तहसील दिवस मा चार सौ आठ दरखासन मा सिर्फ सैंतिस दरखास का ही निपटारा होब कउनौ बड़ी बात न होय। यतना निपटारा बेगैर तहसील दिवस के भी होत रहत है। शायद है कि बची दरखासन का दुबारा से देखा जात होई।
दूसर बात या भी है कि तहसील दिवस मा यतना भीड़ लागत है कि अधिकारी ढंग से समस्या के बारे मा जान पावब तौ दूर कोहू से दुई टूक बात तक नहीं कर पावत। मड़इन से दरखास लिहिन अउर चलता करिन। तहसील दिवस मा आये मड़ई तहसील दिवस मनाये जाय से ज्यादा खुश निहाय। उंई कहत हैं कि तहसील दिवस मा दसन दरकी आवैं के बाद भी कारवाही नहीं होई पावत। घर का काम तौ छूटत ही है साथै किराया भाड़ा अउर समय के बरबादी होत है।
तहसील दिवस मा होय या बेगैर तहसील दिवस अगर मड़इन का दसन दरकी भागैं का परत है, तौ सिर्फ तहसील दिवस मा एक साथै अधिकारिन के बइठैं से कउन फायदा?
तहसील दिवस मनाये से कउन फायदा
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