तीन महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने मुसलिम समुदाय के बीच तीन तलाक के चलन से जुड़े मुकदमे में ऐतिहासिक फैसला दिया था और इसे असंवैधानिक घोषित किया था। तब अदालत ने सरकार को इस मसले पर अगले छह महीने में कानून बनाने की सलाह दी थी।
लेकिन ताज़ा खबर के अनुसार,सरकार एक बार में तीन तलाक कहने की प्रथा यानी तलाक–ए–बिद्दत को पूरी तरह खत्म करने के लिए संसद के शीतकालीन सत्र में एक विधेयक लाने का संकेत दे रही है।
इसके लिए उचित कानून लाने पर विचार करने के लिए एक समिति का गठन किया गया है।
मुसलिम महिला संगठन और दूसरे महिला अधिकार समूह स्पष्ट प्रावधानों वाला कानून बनाने की मांग करते रहे हैं।
इस समय देश में संसद के शीतकालीन सत्र में जानबूझ कर देरी करने से लेकर कई दूसरे मामले सुर्खियों में हैं और उन्हें लेकर सरकार पर तमाम सवाल उठ रहे हैं। ऐसे में सरकार की ओर से तीन तलाक पर कानून बनाने पर विचार के लिए अचानक और अलग से इरादा जताने को स्वाभाविक ही जरूरी मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
एक साथ तीन तलाक से मुसलिम समुदाय में महिलाओं के सामने व्यवहार में किस तरह की मुश्किलें पेश आती रही हैं, यह छिपी बात नहीं है। इसे एक व्यापक समस्या के रूप में दर्ज कर इसके खिलाफ खुद मुसलिम महिलाओं के संगठनों ने बड़ा आंदोलन चलाया तो उसका व्यापक असर देखा गया। उस आंदोलन को मुसलमानों के ज्यादातर हिस्से का समर्थन मिला।
क्योंकि यह मुद्दा धार्मिक रूप से संवेदनशील है, इसलिए सरकार को वह सब कुछ करना चाहिए, जिससे इसका सांप्रदायीकरण न हो सके।