2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव में विजयी होने के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों ने एड़ी चोटी का ज़ोर लगा दिया है। एक ओर कांग्रेस की यू.पी.ए. सरकार उन्तालिस बिल पास करने को तैयार है तो दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के नरेंद्र मोदी अपने नाम की चाय की दुकानें जगह जगह खुलवा रहे हैं। वहीं इस दौड़ में आम आदमी पार्टी नई खिलाड़ी बनकर आई है।
5 फरवरी 2014 को देश में चुनाव के पहले संसद का आखिरी सत्र शुरू हुआ और कुछ ही दिनों में स्पष्ट हो गया कि इस सत्र के द्वारा कांग्रेस एक के बाद एक बिल पास करके अपनी सफलता ज़ाहिर करना चाहती है और अन्य विपक्षी दल इन सभी प्रस्तावों को अस्वीकार कर अपनी धौंस जमाना चाह रहे हैं। मुद्दा क्या है और देश के लिए कितना महत्त्वपूर्ण है, इस बात का कौन ध्यान दे रहा है?
सत्र के दूसरे ही दिन जब सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ बिल को चर्चा के लिए सामने रखा गया तो फौरन विपक्षी पार्टी उस पर टूट पड़े। तेलंगाना को उन्तीस्वां राज्य बनाने की बात को इस मौके पर उठाया गया जबकि यह मामला ऐसे भी आने वाले हफ्ते में उठाने जाना वाला था। वहीं जहां 2009 में कांग्रेस की यू.पी.ए. सरकार ने आदिवासियों के अधिकारों को सुरक्षित करने वाले एक नए खानों के विकास के बिल का वादा किया था, उसे इस सत्र में नहीं रखा जाएगा।
चुनाव की ओर बढ़ते देश में इस समय नेता एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए भाषण देने में, बड़ी-बड़ी बातें करने में इतने व्यस्त हैं कि जनता भी नहीं बता पाएगी कि आखिर कौनसी पार्टी का क्या वादा है और कौनसा नेता किस विचारधारा को मानने वाला है। ऐसे में किस आधार पर चुनी जाएगी आने वाली सरकार?
तमाशा बना देश का विकास
पिछला लेख