अनीता मिश्रा फ्रीलांस पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं ज्वलंत मुद्दों पर कई बड़े अखबारों में नियमित रूप से लिखती हैं
राजस्थान के त्रिमोही गांव के दो कमरों के घर में रहने वाली सत्रह साल की प्यारी-सी लड़की डेल्टा की आंखों में ढेरों सपने थे। बारहवीं में उसने कला प्रतियोगिता में टॉप किया था। पढ़ने में भी तेज थी। इसीलिए उसके पिता अभावों के बीच भी उसे पढ़ाने से कभी पीछे नहीं हटे। टीचर्स-ट्रेनिंग पूरा करने के बाद डेल्टा प्रशासनिक अफसर बनना चाहती थी। लेकिन शायद होनी को यह मंजूर न था।
सत्रह साल की उनकी प्रतिभाशाली बेटी का शव उसके ही कॉलेज के वाटर टैंक में पाया गया। उसके पिता ने रिपोर्ट लिखवाई कि डेल्टा की उसके पीटी प्रशिक्षक ने बलात्कार के बाद हत्या कर दी। लेकिन इस मामले में कॉलेज प्रबंधन की भूमिका भी संदिग्ध है। इसलिए पीटी प्रशिक्षक के साथ और दोषी लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग की जा रही है।
आज डेल्टा के पिता जो कभी डेल्टा का मनोबल बढ़ाते थे। वह कहते हैं कि ‘कोई पिता अपनी बेटी को दसवीं क्लास से आगे की पढ़ाई नहीं करवाए, क्योंकि हर जगह इंसान के रूप में भेडि़ये घूम रहें हैं, खा जाएंगे, निगल जाएंगे!’ डेल्टा के पिता जब यह बोल रहे थे तब उनके दर्द का अंदाजा लगाया जा सकता था। डेल्टा मेघवाल के साथ जो हुआ, उसने उसके पिता को हिला कर रख दिया है।
बताया जा रहा है कि उसे हॉस्टर के वार्डन ने पीटीआइ के कमरे में साफ-सफाई के लिए भेजा था, जहां अकेले पाकर उसने डेल्टा का बलात्कार किया और फिर पकड़े जाने के डर से उसे मार कर टैंक में फेंक दिया गया। अब सवाल यह है कि पीटीआइ के कमरे में साफ-सफाई के लिए डेल्टा को ही क्यों भेजा गया, किसी और की क्यों नहीं। क्या इसलिए कि डेल्टा एक दलित परिवार से ताल्कुल रखती थी? क्या साफ-सफाई का काम केवल दलित होने के नाते डेल्टा से ही करवाया जा सकता था? क्या इसीलिए डेल्टा के मामले को मुख्यधारा के मीडिया ने बहुत महत्व नहीं दिया?
डेल्टा का मामला कुछ संगठनों ने उठाया और सोशल मीडिया के जरिए लोगों तक पहुंचा, तब जाकर लोगों के बीच आक्रोश पैदा हुआ। दबाव जब बढ़ने लगा तभी उस पीटी प्रशिक्षक को गिरफ्तार किया गया। लेकिन डेल्टा को तब तक न्याय नहीं मिलेगा, जब तक उससे हुए बलात्कार और उसकी हत्या में शामिल लोगों को सख्त सजा नहीं दिलाई जाए।