1 फरवरी को चित्रकूट जिला का कोपा गांव अपने जिलाधिकारी नीलम अहलावत और मंडलायुक्त एल वेंकटेस्वर्लु के लिए मेजबानी कर रहा था। जैसा कि पडुई गांव में हुआ, यहाँ भी तैयारियां पूरे जोरों पर थी।
सिर्फ मुआयना से 10 दिनों पहले, इस लोहिया गांव में बिजली प्रति दिन 18 घंटे मुहैया होने लगी। वहीं गांव के प्राथमिक विद्यालय में मंडलायुक्त के ठहरने की व्यवस्था की गयी। जिसके लिए बच्चे रंगा-रंग कार्यक्रम की तयारी में जुटे थे, तो स्कूल प्रशासन स्कूल की रंगाई और जल्दी-जल्दी शौचालय बनाने में जुटे थे। डीएम और मंडलायुक्त के अध्यक्षता वाले चैपाल में, गांव के लोग सूचीबद्ध तरीके से शिकायतों को बताने लगे, जैसे की – अच्छी सड़कों की कमी है, मनरेगा के कार्यान्वयन दोषपूर्ण और मिडडे मील योजना में घटिया खाना। जैसे ही शिकायत सूची बढ़ी, डीएम ग्रामीणों पर चिल्लाने लगी, ‘‘शिकायत करना सबसे आसान बात होता है, काम करना मुश्किल होता है। क्या आपके बच्चों को खिचड़ी और दलिया नहीं बल्कि बिरयानी और चिकन दी जानी चाहिए?‘‘
दरअसल, लोगो का शिकायत करना और कराहना आसान ही है। लेकिन, सोचिये क्या साल-दर-साल ग्रामीण संकट सेें जूझते रहे, ये आसान है?
डीएम अहलावतः क्या बच्चों के लिए खिचड़ी नहीं, बिरयानी भेजू?
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