पूर्व महिला कप्तान डायना एडुल्जी का कहना है कि बीसीसीआई ने हमेशा से ही महिला क्रिकेट के साथ सौतेला रवैया अख़्तियार किया है। आलम ये है कि बीसीसीआई कभी चाहती ही नहीं थी कि महिला क्रिकेट का संचालन उनके हाथों में हो। ये तो क्रिकेट की सर्वोच्च संस्था आईसीसी का दबाव था जिसके चलते महिला क्रिकेट संघ का विलय पुरुष क्रिकेट के साथ साल 2009 में हुआ। बावजूद इसके महिला क्रिकेट को प्रोत्साहित करना तो दूर की बात, बीसीसीआई के पुरुषवादी मानसिकता वाले अधिकारियों ने खिलाड़ियों को अपमामित करने का कोई मौका नहीं छोड़ा।
जब एन श्रीनिवासन बीसीसीआई के अध्यक्ष बने थे तो उन्हें बधाई देने वालों में सबसे आगे पूर्व महिला कप्तान डायना एडुल्जी थी। लेकिन, एडुल्जी की बधाई अभी ख़त्म भी नहीं हुई थी कि श्रीनिवासन ने उन्हें जवाब में कहा– अगर मेरा बस चलता तो महिला टीम को तो मैं खेलने ही नहीं देता।
हैरान एडुल्जी ने पूछा ऐसा क्यों सर तो श्रीनिवासन का जवाब था– मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। मेरे पास कोई विकल्प नहीं है और चूंकि हमें महिला क्रिकेट का भी संचालन करना है तो हम बस कर ही रहे हैं।
लेकिन आज श्रीनिवासन भारतीय क्रिकेट से बाहर हो चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने उनके मंसूबों पर बुरी तरह से पानी फेर दिया है और इत्तेफाक से एडुल्जी मौजूदा क्रिकेट संचालन समिति में इकलौती महिला क्रिकेटर हैं।
पिछले कुछ सालों में महिला खिलाड़ियों के लिए हालात सुधरें हैं लेकिन पुरुष खिलाड़ियों को मिलने वाले पैसे और सुविधा की तुलना भी नहीं हो सकती है। भारत के किसी टॉप खिलाड़ी (धोनी या कोहली) को आज 2 करोड़ रुपए का सालाना कॉन्ट्रैक्ट मिलता है तो वहीं महिला क्रिकेट की मिथाली राज के लिए ये करार 15 लाख रुपये का है। पिछले साल पुरुष टीम के हर ग्रेड में सेलेरी लगभग दुगुणी हो गयी लेकिन महिला क्रिकेट के लिए आखिरी बार सेलेरी रिवीज़न 2015-16 में ही हुआ था।