आशा है कि आपने डाबर का नया विज्ञापन तो देखा ही होगा। जिसमें पत्नी को तैयार होकर बाहर जाता देख पति को जलन होती है और वह उसका मंगलसूत्र कपड़ों के ऊपर कर देता है ताकि वह आसानी से दिखाई दे। एक बार में देखने में लगता है – देखो, कितना प्यार करते हैं एक दूसरे से। एक दूसरे के लिए जलन महसूस करते हैं एक दूसरे के लिए कितनी वफादारी रखते हैं। मगर ऐसा नहीं है ये विज्ञापन भी उन विज्ञापनों में से है जो औरतों को संपत्ति के रूप में दिखाता है।
इस केस में मंगलसूत्र स्वामित्व का सबूत है। मंगलसूत्र देख कर ही दूसरे आदमी समझ जाएं की औरत शादीशुदा है, किसी और की संपत्ति है और दूर रहें। मैं शादी की अवधारणा के खिलाफ नहीं। मगर इस तरह के विज्ञापन पितृसत्तात्मक सोच को बढ़ावा देते हैं जिसके अनुसार औरत को बार-बार अपने पति और दुनिया को यह दिखाना होता है कि वह पति के प्रति कितनी समर्पित है। अगर वह अपनी पत्नी के सुन्दर लगने से असुरक्षित महसूस करता है तो ये उसकी समस्या है इसके लिए पत्नी से ये उम्मीद नहीं रखी जा सकती कि वह हर रोज़ अपनी वफादारी साबित करे।
मैं कई ऐसे जोड़ों को जानती हूं जो शादी करके खुशी – खुशी रह रहे हैं मगर शादी की निशानियों जैसे – मंगलसूत्र, सिन्दूर या करवाचैथ व्रत को ज़रूरी नहीं समझते। विज्ञापन लोगों की सोच को बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसे में उनका प्रगतिवादी सोच रखना ज़रूरी है।
साभार-यूथ की आवाज़ की किड्स स्पीक आउट श्रृखंला।
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