संसद का शीतकालीन सत्र 15 दिसंबर से 5 जनवरी 2018 तक चलेगा। इस सत्र में कई महत्वपूर्ण विधेयक संसद के दोनों सदनों में हैं, जिनमें से एक अहम विधेयकों में से ट्रांसजेंडर पर्सन्स प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स बिल 2016 है। ट्रांसजेंडर के लिए बनाये गए इस विधेयक को जहां एक प्रगतिशील कदम कहा जा रहा है तो वहीं विधेयक के प्रावधानों से देशभर के सामाजिक कार्यकर्ताओं में गुस्सा है। जानते हैं विधेयक की किन बातों में विवाद है।
इस विधेयक में ट्रांसजेंडर की परिभाषा इस तरह है कि न तो पूरा पुरुष न पूरी नारी। जबकि इस समुदाय के लोग ऐसा नहीं मानते हैं, वे इस परिभाषा को व्यापक करना चाहते हैं।
इसके साथ ही अधिकारी तय करेंगे की कौन व्यक्ति ट्रांसजेंडर है। इस समुदाय के व्यक्तिओं को कहना है कि वे किसी के सामने कपड़े क्यों उतारें, जबकि सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि कोई व्यक्ति बोले कि वह ट्रांसजेंडर है तो ये मान लिया जाएगा। ट्रांसजेंडर समुदाय का कहना हैं कि एक पुरुष और महिला के अपने लिंग बताने पर तो कोई उसकी जांच नहीं करता है, तो उनके साथ ये जांच क्यों हो?
इस बिल के कानून बन जाने से ट्रांसजेंडर का पुराना व्यवसाय यानी डेरों को मान्यता नहीं मिलेगी। हालांकि अभी भी बहुत से ट्रांसजेंडर पढ़े-लिखे नहीं हैं, ऐसी स्थिति में वे भुखे मर जाएंगे। आज भी देश में ट्रांसजेंडर की बहुत बड़ी संख्या बधाई मांगकर अपना पेट पालती है। इन विरोधों के आधार पर ट्रांसजेंडर समुदाय इस बिल का विरोध कर रहे हैं।
ट्रांसजेंडर बिल का विरोध
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