जिला ललितपुर, गांव बरौन, 29 नवम्बर 2016। देश को टीबी मुक्त बनाने की कोशिश के वाबजूद भी देश में टीबी के मरीजों में कमी नहीं आई हैं, जबकि इस बीमारी का पूरा इलाज उपलब्ध है।
ललितपुर के बरौन गांव के रहने वाले दरुवा और सरि दोनों टीबी के मरीज हैं और टीबी की बीमारी से होने वाली परेशानियों से रोज गुजर रहे हैं। बीमारी से होने वाली परेशानियों के साथ ही दोनों को समाज से भी अलग-थलग रहना पड़ता हैं।
24 वर्षीय दरुवा को टीबी की बीमारी उसके मृत पिता से लगी थी। दरुवा की बीमारी खतरनाक हो जाने पर उसकी मां और भाई टीबी की बीमारी उन तक ना फैल जाए, इस दहशत में उन्हें छोड़कर चले गए। दरुवा के चाचा-चाची ने इस हालत में उसकी देखभाल करी।
दरुवा कहते हैं, “मेरी हालत बहुत खराब थी, मैं खून की उल्टी करता था और होश आने पर खुद उल्टी को साफ भी कर देता था, तो कभी मेरी चाची ये काम करती थी।” आज दरुवा का इलाज चल रहा है और वह धीरे-धीरे ठीक भी हो रहा है पर अभी भी वह हर दो महीने में डाक्टर को नहीं दिखा पाता है, क्योंकि उसके पास इतने पैसे नहीं हैं कि वह दो महीने में डॉक्टर को दिखाने जा सके इसलिए छह महीने बाद वह डॉक्टर को दिखाने जाता है। दरुवा बीमारी के कारण बहुत कमजोर हो गया है और बीमारी ने शरीर से भी ज्यादा उसे मानसिक तौर पर तोड़ा है क्योंकि इस ही बीमारी के कारण उसके मां-भाई उसे छोड़कर चले गए थे।
48 वर्षीय सरि को टीबी की बीमारी अपने पति से फैली थी। बीमारी की शुरुआत में सरि को तेज बुखार आया और जब सरि ने दिखाया तो एक्सरे टेस्ट से पता चला कि उन्हें टीबी की बीमारी है। उसके बाद उनका इलाज चलना शुरु हुआ और आज उनके इलाज को तीन साल हो गए हैं। वह अभी भी इस बीमारी की वजह से घबराहट महसूस करती हैं।
सरि बताती हैं, “बीमारी इतनी बढ़ चुकी थी कि मुझे लगातार तीन महीने इंजेक्शन लगे और आज भी मैं बहुत सी दवा खाती हूं।”
दरुवा और सरि को इस बात का डर हमेशा रहता हैं कि उनकी बीमारी उनसे किसी और को ना लग जाए, जिसके कारण वे अपने बर्तन और खुद को लोगों से अलग-थलग रखते हैं। सरि अपने पोते-पोती को खूब प्यार करना चाहती हैं पर बीमारी फैलने के डर के कारण वह बच्चों से दूर ही रहती हैं। दरुवा भी समाज में उठना बैठना चाहता हैं पर इस बीमारी ने उसे ऐसा करने से रोक रखा हैं।
दरुवा और सरि गरीब हैं और उन्हें भोजना के पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं जिसके कारण दवा भी असर नहीं कर पा रही हैं। दरुवा तो आलू, अरबी, हरी मिर्च, हरी सब्जी और लौकी ही खाते हैं। उन्हें एक समय का दूध भी उपलब्ध नहीं हो पाता हैं, जिसके ही कारण इन दोनों की बीमारी ठीक होने में अधिक समय ले रही है।
बरौन की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता पानकुंवर इन दोनों की बीमारी की जानकारी होने की बात कहती हैं और बताती हैं कि उनका नौगांव स्वस्थ्य केंद्र से चलने रहा है।
रिपोर्टर- राजकुमारी
Published on Nov 24, 2016