जिला झांसी, शहर झांसी आदमी अपने आखरी पल में परमात्मा से मिलबे की चाह रखत और संगे जो भी कामना करत के उनको अंतिम संस्कार पूरे रीती रिवाज से होबे। लेकिन झांसी जिला के सिमरावारी गांव में अंतिम संस्कार तो बाद की बात हे इते तो मुर्दे के अंतिम संस्कार की जगह की कमी हे।जिला झांसी, शहर झांसी आदमी अपने आखरी पल में परमात्मा से मिलबे की चाह रखत और संगे जो भी कामना करत के उनको अंतिम संस्कार पूरे रीती रिवाज से होबे। लेकिन झांसी जिला के सिमरावारी गांव में अंतिम संस्कार तो बाद की बात हे इते तो मुर्दे के अंतिम संस्कार की जगह की कमी हे। बड़ी हैरानी की बात तो जो हे के न तो गांव में शमशान घाट हे न कोनऊ कब्रिस्तान हे। जी से मुर्दा को नदी किनारे या दूसरे गांव में ले जाने परत। अगर कोऊ की मृत्यू बरसात में होत तो पानी रुक जाबे को इन्तजार करने परत। इधन गीलो होबे के मारे जलाबे में दिक्कत आत। और मुर्दन को दफनाबे दूसरे पास के गांव बबीना या खैलार ले जात तो गांव वाले दफनाबे से मना कर देत। गांव वालिन को आरोप हे के उनकी अर्जी की सुनवाई नइ हो रई नेता विधायक आत और आश्वाशन दे के चले जात। मुन्ना ने बताई के नदी किनारे ले जाने परत। या बी एच एल वालिन को हे सरकारी अगर बे अनुमति दे देत तो उते ले जात नइ तो नदी में ले जात। सबीरा ने बताई के अगर रात के कछू हो जात तो किते ले जाबे। रात भर लाश रखी रत फिर अपनी अपनी भूमि पे ले जात सबेरे नई तो नदी पे ले जात। मीरा ने बताई के इते पच्चीस हजार की आबादी हे एक बार हम दस बारह आदमी दरखास लेके गये ते लेकिन एक साल हो गयी कछू सुनवाई नइ भइ। जब अधिकारी ही दफ्तर में नइ रेहे तो जनता तो परेशान हो ही।
रिपोर्टर- सोनी
19/06/2017 को प्रकाशित