जिला झांसी, गांव बिजोली इते आज भी सरकार जन धन योजना चलावे के बाद भी झांसी के बिजोली गांव में आदमी पन्नी बीन के अपनों गुजरो करत। और जे पन्नी दस से बीस रुपईया किलो बिकती और इने बीनवे के लाने आदमी दूर दूर तक जात और हल्के हल्के मोड़ी मोड़ा भी जोई काम करत। न कोऊ पढ़वे जा पात न पेट भर खा पात।
रौशनी ने बताई के हम पन्नी बीनवे जात जई से अपने मोड़ी मोड़न को पाल रए अब कछु नईया का करे जोई करने परे। घर नई तो एेसे में डरे रत और पानी के मारे चौमासिन में रोटी नई कर खा पात न सो पात। फूला ने बताई के हम प्लास्टिक बीनत। जा प्लास्टिक दस रुपजा किलो बिकत।
सोना ने बताई के जेई प्लास्टिक और पन्नी बीनत और जई में पेट पाल रए एक किलो चून लेयात और जोई बना खा लेत न पेट भरत न कछु। लेकिन का करे न हमनो न घर हे न कछु एसे में डरे रत चाहे आंधी आ जाये चाहे पानी बरसे एसे में डरे रत। पचास साठ साल हो गयी हमे इते रत रत और काम करत करत। कालोनी मिली सो का काम कि उते कोनऊ काम नईया। और प्रधान नों जाओ सो बे कत के कालोनी बनवा दई राशन कार्ड बनवा दये अब का करबे। बेनीबाई ने बताई के एक दिना में पांच छह किलो बीन लेत और बीनवे पेदल जात जी के आदमी सो बे मजूरी करत अब हमाय आदमी नईया सो हम खुद जात पन्नी बीनवे के लाने।कालोनी मिली अम्बा बाये करारी में हे उते रे के का कर हे उते कछु कामई नईया का कर हे उते का खेहे।
क्रांति ने बताई के हम छोटे से जो काम कर रए और हमाय मताई बाप दोई जने इते ख़त्म भए और हमाये चार बेन भज्जा हे सो हमई बीनवे जात और अपने घर को खर्च चलात बीनवे के लाने हम हसारी,बिजोली,झांसी पैदल जात।और जो कछु बीन के लेयात सो बेच के चुन लेयात ।
बई से अपने बेन भज्जन को पेट।उने पाल रए और पढ़बे तो न हम जा पात न हमाय बेन भज्जा काय के जितनी बीनत पन्नी उन से केवल खाबे को ही लेया पात। और कोऊ इते पढ़ात हे नईया सो सब रे मोड़ी मोड़ा जोई काम करत पन्नी बीनत फिरत बस और कछु नई करत।
रौशनी ने बताई के हम पन्नी बीनवे जात जई से अपने मोड़ी मोड़न को पाल रए अब कछु नईया का करे जोई करने परे। घर नई तो एेसे में डरे रत और पानी के मारे चौमासिन में रोटी नई कर खा पात न सो पात। फूला ने बताई के हम प्लास्टिक बीनत। जा प्लास्टिक दस रुपजा किलो बिकत।
सोना ने बताई के जेई प्लास्टिक और पन्नी बीनत और जई में पेट पाल रए एक किलो चून लेयात और जोई बना खा लेत न पेट भरत न कछु। लेकिन का करे न हमनो न घर हे न कछु एसे में डरे रत चाहे आंधी आ जाये चाहे पानी बरसे एसे में डरे रत। पचास साठ साल हो गयी हमे इते रत रत और काम करत करत। कालोनी मिली सो का काम कि उते कोनऊ काम नईया। और प्रधान नों जाओ सो बे कत के कालोनी बनवा दई राशन कार्ड बनवा दये अब का करबे। बेनीबाई ने बताई के एक दिना में पांच छह किलो बीन लेत और बीनवे पेदल जात जी के आदमी सो बे मजूरी करत अब हमाय आदमी नईया सो हम खुद जात पन्नी बीनवे के लाने।कालोनी मिली अम्बा बाये करारी में हे उते रे के का कर हे उते कछु कामई नईया का कर हे उते का खेहे।
क्रांति ने बताई के हम छोटे से जो काम कर रए और हमाय मताई बाप दोई जने इते ख़त्म भए और हमाये चार बेन भज्जा हे सो हमई बीनवे जात और अपने घर को खर्च चलात बीनवे के लाने हम हसारी,बिजोली,झांसी पैदल जात।और जो कछु बीन के लेयात सो बेच के चुन लेयात ।
बई से अपने बेन भज्जन को पेट।उने पाल रए और पढ़बे तो न हम जा पात न हमाय बेन भज्जा काय के जितनी बीनत पन्नी उन से केवल खाबे को ही लेया पात। और कोऊ इते पढ़ात हे नईया सो सब रे मोड़ी मोड़ा जोई काम करत पन्नी बीनत फिरत बस और कछु नई करत।
रिपोर्टर- लाली
11/08/2016 को प्रकाशित
झांसी का बिजोली गाँव – जहां सहरिया आदिवासी लोग पन्नी बीनकर अपना गुज़ारा चलाते हैं.