जिला झाँसी, शहर झाँसी में बन रई सुंदर सुंदर मूर्ति। मूर्ति बनवा बे को काम झांसी के रैबे वाले नरेश कुमार करत ।
नरेश कुमार ने बताई के हम तो पूरो सामान खरीद के देत।और बनाबे बाले लगे सो बे बनात हें।बनाबे बाले हमाय ते बंगाल इन्दौर भौत दूर से आत।बेई आके बनात। जो काम करवा बे के लाने पैले अपने रुपजा खर्च करने परत और फिर ईमे फायदा भी भौत मिलत।
सुरेश ने बताई के हम जो काम जब चौदा साल के हते तब से कर रए आज हमे पैतीस साले हो गयी।जो काम करत करत।जब हमने जो काम करबो शुरू करो तो हमने भौत मार खाई अपने पापा से।पापा को कैबो हतो के अगर करने हें काम तो कोनाऊ धंधो करो।भौत मारो हमे।पापा को केबो हतो के जो का मट्टी को कम करबो सीखो।हमने कई अगर हम कर हें तो जोई करे नई तो फिर कछु नई करे।और हम जो काम करन लगेते अब हमाई कला देख के हमाय पापा भी खुस होत।
सुरेन्द्र ने बताई के हम कछु भी बना सकत हमाय पास इतनी बड़ी कला और शक्ति हें।हमाय ऊपर तो मा सरस्वती की कृपा हें।अगर उनकी कृपा नई होती तो हम आज कछु लाक नई होते।अब हमाये लाने कोई भी मूर्ति बनाबो मुश्किल नईया। कायके हम हर मूर्ति बना लेत हें चाह बो फिर गणेश जी की होय या फिर कोनऊ भी देवी जी की मूर्ति।अगर कोऊ मर जात या फिर कोऊ समाधी ले लेत तो वाकी भी मूर्ति बना देत।और जो काम सब कोऊ नई कर सकत ।काय के अगर मन साफ़ नईया तो कछु नईया और अच्छे मन से साफ़ दिल से करने परत।बोई कर पात।
सुरेश ने बताई के इने बनाबे में मईनन लग जात।काय के इनपे इक्ठो काम नई होत।पैले काश की बधाई होत फिर मट्टी को काम होत फिर पुटीन को काम होत फिर इनको सुखा के इनपे रंग करत और उनको श्रृंगार करत फिर बेचत।
सब संगे कर देत तो मूर्ति झिर जाती तो ग्राहक पसंद नई करत। एक मूर्ती बनाबे में कम से कम बारा हजार रुपजा को खर्चा आत कोनउ में चार को जैसी मूर्ति बनती बैसे रूपजा खर्च होत। और फिर मौ मांगे रुपजा मिलत। हम ओरे एेसी बनात के कोऊ भी मना नई करत।
हम ओरे कबहु मूर्ति खुद अपने घरे नई बैठारत काय के हम खुद बनात। इके मारे और अगर हमे पूजा करने तो हम दूसरी जगा जाके कर यात।और भजन पूजन जो भी करने सो हम रुपजा दे देत और करबा देत।लेकिन हम खुद नई रखत मूर्ति।
नरेश कुमार ने बताई के हम तो पूरो सामान खरीद के देत।और बनाबे बाले लगे सो बे बनात हें।बनाबे बाले हमाय ते बंगाल इन्दौर भौत दूर से आत।बेई आके बनात। जो काम करवा बे के लाने पैले अपने रुपजा खर्च करने परत और फिर ईमे फायदा भी भौत मिलत।
सुरेश ने बताई के हम जो काम जब चौदा साल के हते तब से कर रए आज हमे पैतीस साले हो गयी।जो काम करत करत।जब हमने जो काम करबो शुरू करो तो हमने भौत मार खाई अपने पापा से।पापा को कैबो हतो के अगर करने हें काम तो कोनाऊ धंधो करो।भौत मारो हमे।पापा को केबो हतो के जो का मट्टी को कम करबो सीखो।हमने कई अगर हम कर हें तो जोई करे नई तो फिर कछु नई करे।और हम जो काम करन लगेते अब हमाई कला देख के हमाय पापा भी खुस होत।
सुरेन्द्र ने बताई के हम कछु भी बना सकत हमाय पास इतनी बड़ी कला और शक्ति हें।हमाय ऊपर तो मा सरस्वती की कृपा हें।अगर उनकी कृपा नई होती तो हम आज कछु लाक नई होते।अब हमाये लाने कोई भी मूर्ति बनाबो मुश्किल नईया। कायके हम हर मूर्ति बना लेत हें चाह बो फिर गणेश जी की होय या फिर कोनऊ भी देवी जी की मूर्ति।अगर कोऊ मर जात या फिर कोऊ समाधी ले लेत तो वाकी भी मूर्ति बना देत।और जो काम सब कोऊ नई कर सकत ।काय के अगर मन साफ़ नईया तो कछु नईया और अच्छे मन से साफ़ दिल से करने परत।बोई कर पात।
सुरेश ने बताई के इने बनाबे में मईनन लग जात।काय के इनपे इक्ठो काम नई होत।पैले काश की बधाई होत फिर मट्टी को काम होत फिर पुटीन को काम होत फिर इनको सुखा के इनपे रंग करत और उनको श्रृंगार करत फिर बेचत।
सब संगे कर देत तो मूर्ति झिर जाती तो ग्राहक पसंद नई करत। एक मूर्ती बनाबे में कम से कम बारा हजार रुपजा को खर्चा आत कोनउ में चार को जैसी मूर्ति बनती बैसे रूपजा खर्च होत। और फिर मौ मांगे रुपजा मिलत। हम ओरे एेसी बनात के कोऊ भी मना नई करत।
हम ओरे कबहु मूर्ति खुद अपने घरे नई बैठारत काय के हम खुद बनात। इके मारे और अगर हमे पूजा करने तो हम दूसरी जगा जाके कर यात।और भजन पूजन जो भी करने सो हम रुपजा दे देत और करबा देत।लेकिन हम खुद नई रखत मूर्ति।
28/07/2016 को प्रकाशित
झाँसी में बन रही हैं ख़ास मूर्तियां
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