मनरेगा योजना के सही तरीका से न चल पावैं के खातिर हमेषा से सवाल उठे हैं, पै सुधार करैं खातिर उपाय नहीं ढूढ़ा गा आय। योजना चलावैं अउर यहिमा होय वाले घोटाला का रोकै खातिर सरकार कइयौतान के कोषिष करिस है। लोगन के खाता मा सीधे मजदूरी डालै से लइके अउर भी कइयौ उपाय। पै सरकार के उपाय से आगे भ्रष्टाचार के उपाय ज्यादा मजबूत हैं। अगर सरकार के उपाय कमजोर न होत तौ हर साल करोड़न के गिनती मा आवैं वाला बजट खर्च होय के बाद भी मड़इन के मजदूरी पिछले से पिछले साल के न बकाया रहत।
मनरेगा या उद्देश्य से शुरु कीन गा रहै कि पलायन रोकैं खातिर साल मा सौ दिन के मजदूरी दें के गारंटी है। बगैर मशीनीकरण के काम कीन जई। जेहिमा गांव के मड़ई ही लम्बे समय तक बना रहै वाले विकास खातिर काम करिहंै। येतनी नींक अउर सार्थक योजना का नींक ढंग से चलावै के जघा अधिकारिन के लापरवाही मिट्टी मा मिला के राख कई दिहिस है। या रोजगार गारंटी योजना के पीछे अब मजदूरी के सही व समय से भुगतान न कइके योजना के गुणवत्ता के जघा मा सवाल जान बूझ के उठवावत हैं। लोगन का ज्यादातर साल मा सौ दिन का काम नहीं मिलत है। मजदूरन के मजदूरी का भुगतान नहीं कीन जात है। सरकार उपाय सोंचिस कि लोगन के खाते मा सीधा रुपिया भेज के भ्रष्टाचार मा रेाक लग जई पै वहिसे ज्यादा स्थिति बदतर होइगे है। काहे से लोगन के खाता मा तबै ही रुपिया अई जबै प्रधान मस्टररोल सही अउर इमानदारी से भर के बैंक मा जमा करी। जबै प्रधान मस्टररोल बनवावंै मा गड़बड़ी करत है तौ मजदूरी के भुगतान मा भी गड़बड़ी होई। जबै तक निगरानी के जिम्मेदारी न समझी जई जबै तक या गड़बड़ी नहीं सुधारी जा सकत आय।
जेतना बड़ा बजट वतना बड़ा भ्रष्टाचार
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