पिछले 10 दिन से भारत की राजधानी दिल्ली का माहौल गर्म चल रहा है। 10 फरवरी को जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू), जो भारत के बेहतरीन विश्वविद्यालयों में से एक है, में एक स्टूडेंट यूनियन ने अफजल गुरु पर कार्यक्रम रखा। जब यूनिवर्सिटी ने कार्यक्रम के शुरू होने से पहले अनुमति हटा दी तो कुछ छात्रों ने इसका विरोध किया और नारे लगाए। एबीवीपी और भाजपा के द्वारा लगाई एफआईआर पर दिल्ली पुलिस ने एक्शन लिया, और जेएनयू स्टुडेन्ट यूनियन अध्यक्ष कन्हैया कुमार को देशद्रोह के इल्ज़ाम में गिरफ्तार कर लिया।
सुनवाई पटियाला हाउस कोर्ट में थी, जहां वकीलों और भाजपा के लोगों ने पत्रकारों, छात्रों और अध्यापकों को मारा। कोर्ट में केस जारी है लेकिन भाजपा का व्यवहार, और पुलिस की निष्क्रियता काफी चिंताजनक बन चुकी है। जो बात जेएनयू के छात्रों के प्रदर्शन से शुरू हुई, अब मोदी सरकार की परीक्षा बन गई है। किसका देश है, कौन देशभक्त है, कौन देशद्रोही है, किसको बोलने की स्वंत्रता है, यह सवाल उठाए जा रहे हैं।
देशभक्ति का सर्टिफिकेट आरएसएस से नहीं चाहिए
हमें देशभक्ति का सर्टिफिकेट आरएसएस से नहीं चाहिए। हम इस देश के जो 80 प्रतिशत गरीब हैं उनके लिए लड़ते हैं। हमें अम्बेडकर और अपने संविधान पर पूरा भरोसा है। संघियों की पोल खुल जाएगी अगर देश में बुनीयादी ढांचे पर चर्चा हुई।
मैं कहता हूं कि इस देश में लोकतंत्र है और वो सबको बराबरी का अधिकार देता है, चाहे वे किसान हो, महिलाएं हों, विद्यार्थी हो। लेकिन हम बर्बाद करना चाहते हैं शोषण और जातिवाद की संस्कृति को, हिंसा को।
कुछ साथी कहते थे कि हमारे टेक्स के पैसे से, सबसिडी के पैसे से जेएनयू चलता है। तो हां सच है, सबसिडी के पैसे से चलता है। ये सवाल खड़ा करना चाहिए कि विश्वविद्यालय होते क्यों हैं? विश्वविद्यालय समाज के सामूहिक अंतःकरण की आलोचना के लिए होते हैं। अगर विश्वविद्यालय अपने कर्तव्य में असफल हो जाएं तो कोई राष्ट्र ही नहीं होगा। अगर लोग राष्ट्र का हिस्सा नहीं होंगे तो वो अमीरों का चारागाह बन जाएगा।
जो मानवता के खिलाफ खड़ा है, जो जातिवादी है, मनुवादी है, ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद का गठजोड़ करता है उसके चेहरे को बेनकाब करना है। और सचमुच की आज़ादी हमको देश में स्थापित करनी है। वो आज़ादी संविधान, संसद और लोकतंत्र से आएगी।
– यह जेएनयूएसयू अध्यक्ष कन्हैया कुमार के कैम्पस पर दिया गया भाषण का एक अंश है
विश्वविद्यालय में ख्यालात की लड़ाई होनी चाहिए
हमारे विश्वविद्यालय में हिन्दुस्तान के चारों ओर से गरीब से गरीब छात्र पढ़ने आते हैं। लेकिन पिछले छः महीनों से यूनीवर्सिटी पर बहुत बड़ी साजिश हुई है।
कन्हैया कुमार को देशद्रोह के मामले में गिरफ्तार कर लिया गया है। साथ ही कुलपति ने पुलिस को छात्रों, कर्मचारियों, टीचरों को गिरफ्तार करने का अधिकार दिया है। पूरी यूनीवर्सिटी पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया है।
हम 5 महिला और 2 पुरूष टीचर कन्हैया से मिलने कोर्ट गए। वहां पर वकीलों का एक झुण्ड गाली बकने लगा, और देशद्रोह का आरोप लगा रहा था। हमें धक्का देकर बाहर करने की कोशिश की गई। पुलिस उन्हें रोक नहीं रही थी।
अगर छात्रों के हक के लिए, महिलाओं के हक के लिए, उनके अधिकारों के लिए बोलना देशद्रोह है तो हमारा संविधान कहां गया?
विश्वविद्यालय में सिर्फ ख्यालात की लड़ाई होनी चाहिए। अगर पूरे देश को एक यूनीवर्सिटी के खिलाफ कर दें तो आप यूनीवर्सिटी को मारना चाहते है। – जेएनयू अध्यापक आयशा किदवाई की खबर लहरिया से बातचीत