ढाका, बांग्लादेश। भारत में ज़्यादातर लोग औरतों की तारीफ भी भेदभाव भरे नज़रिए से करते हैं। कुछ ऐसी ही तारीफ करके देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फंस गए। नरेंद्र मोदी ने 9 जून को बांग्लादेश की राजधानी ढाका में कहा था कि औरत होने के बावजूद भी आतंकवाद पर बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की ज़ीरो टालरेंस नीति यानी आतंकवाद को बिल्कुल भी बर्दाश्त न करने की नीति सराहनीय है।
नरेंद्र मोदी के इस बयान पर सवाल उठता है कि क्या आतंकवाद या किसी अन्य गंभीर मसले पर केवल पुरुष ही सख्ती करते हैं? क्या औरतें ऐसे मसलों पर कमज़ोर पड़ जाती हैं? क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि औरत होने के बावजूद शेख हसीना की आतंकवाद पर सख्ती सराहनीय है। यह चिंता का विषय है कि प्रधानमंत्री के पद पर बैठे नरेंद्र मोदी का नज़रिया औरतों के लिए भेदभाव भरा ही है।
उनके इस बयान से तो यही लगता है कि नरेंद्र मोदी के मन में भी बिल्कुल वही सामाजिक धारणा औरतों के लिए बनी है जो ज़्यादातर आम लोगों के मन में होती है।
जेंडर आधारित भेदभाव भरे बयान राजनीति में आना कोई नई बात नहीं है।
जेडीयू पार्टी के नेता शरद यादव ने हाल ही में दक्षिण भारत की औरतोें को सांवली औरतें कहा था। कांग्रेस के सांसद संजय निरुपम ने भाजपा की नेता स्मृति ईरानी के बारे में कहा था कि राजनीति में आने से पहले वह टी.वी धारावाहिकों में कूल्हे मटकाती नज़र आती थीं।
शरद यादव ने तो महिलाओं के आरक्षण के मुद्दे पर संसद में ही कहा था कि आरक्षण का फायदा ऊंचे तबके की औरतों यानी कटे बालों वाली औरतों को ही मिलेगा। नेता अभिजीत मुखर्जी ने दिल्ली में 2012 में चलती बस में हुए सामूहिक बलात्कार के मामले में विरोध करने वाले नारीवादी संगठनों के बारे में कहा था कि विरोध करने वाली औरतें डेंटेड पेंटेड और डिस्को में जाने वाली हैं।
संसद में बैठी उन महिला नेताओं का रवैया भी चिंताजनक है जो ऐसे बयानों को अनदेखा करती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस बयान पर न तो शेख हसीना और न ही दूसरी महिला नेताओं ने आपत्ति जताई।
इकतालिस साल पुराना सीमा विवाद खत्म
भारत और बांग्लादेश के बीच इकतालिस साल पुराना सीमा विवाद खत्म हो गया है। 6 जून को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में दोनों देशों के बीच सीमा समझौते पर हस्ताक्षर हो गए। समझौते के तहत भारत करीब सत्रह हज़ार एकड़ ज़मीन बांग्लादेश को देगा। वहीं बांग्लादेश करीब सात हज़ार एकड़ ज़मीन भारत को देगा। इसके तहत भारत के एक सौ ग्यारह गांव बांग्लादेश को मिलेंगे और बांग्लादेश के इक्यावन गांव भारत में शामिल होंगे।
क्या था विवाद?
यह विवाद भारत और पाकिस्तान के बंटवारे यानी 1947 से चल रहा था। बंटवारे के बाद एक सौ ग्यारह ऐसी बस्तियां बच गई थीं, जो न भारत में थीं न बांग्लादेश में। इन बस्तियों में इक्यावन हज़ार से ज़्यादा लोग रहते हैं। इनके पास न तो पहचान पत्र हैं और न ही कोई सरकारी सुविधा। यानी ये किसी देश के नागरिक नहीं थे। लगातार बांग्लादेशियों की घुसपैठ का मुद्दा भी भारत में उठता रहता था।