खबर लहरिया ने कुछ महीने पहले एक सर्वे के तहत छोटे शहरों और जिले स्तर पर महिला पत्रकारों को तलाशने की कोशिश शुरू की। छह महीनों में चार राज्यों में बीस महिला पत्रकारों का इंटरव्यू किया गया और कई अखबारों और टी.वी. चैनलों के संपादकों से मुलाकात हुई।
महिलाओं को पत्रकारिता के क्षेत्र में रहकर और उसके बाहर भी अपनी बात कहने के मौके कम मिलते हैं। जिन पत्रकारों से मिले, उनके अनुभवों और संघर्ष के बारे में 27 फरवरी को नई दिल्ली में ‘जि़ले की हलचल’ नाम की एक रिपोर्ट निकाली गई। जि़ला और ग्रामीण महिला पत्रकारों का पहला विशेष नेटवर्क स्थापित किया गया। इस कार्यक्रम में फिल्म अभिनेत्री नंदिता दास मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुईं।
महिलाएं बनाम पुरुष
हमने महिला रिपोर्टर और कुछ वरिष्ट पुरुष पत्रकारों और संपादकों से बात की। पुरुषों को इन औरतों के होते हुए भी लगता है कि पत्रकारिता का काम औरतों के लिए नामुमकिन है।
महिला – जि़ले पर काम करना बेहतर है क्योंकि आप किसी के नीचे काम नहीं कर रहे होते। आफिसों में काम कर रही महिला पत्रकारों को बहुत परेशान किया जाता है।
पुरुष – जि़ले में महिलाओं का पत्रकार होना बड़ा मुश्किल है। यदि मैं स्वयं वहां हूं तो उनकी रक्षा कर सकता हूं पर जिलों में यह संभव नहीं है।
महिला -मुझे अपराधों के बारे में खबरें करना पसंद है। पत्रकारिता सिर्फ लिखने के बारे में नहीं है। एक जुनून होना चाहिए। जब तक थोड़ा खतरा न हो, मज़ा भी नहीं आता।
पुरुष – राज्य के हर जि़ले में हमारा एक रिपोर्टर है पर इनमें से एक भी महिला नहीं है। आप ही बताइए, बेचारी लड़की करेगी क्या? कैसे महिलाएं इस काम को संभालेंगी?
महिला – मैं पत्रकार बनी ही इसलिए क्योंकि यही एक ऐसा ज़रिया है जिससे आप सत्ताधारी लोगों का खुलासा कर सकते हैं। भले ही पैसा ज़्यादा न हो, पर खुद की पहचान बनती है।
पुरुष – छोटे शहरों में महिलाएं पत्रकार कैसे हो सकती हैं? वहां तो सत्ताधारी लोगों का उन्हें सीधे-सीधे सामना करना पड़ता है। महिलाएं ऐसी स्थिति में क्या करेंगी?