प्रसिद्ध हुमायूं के मकबरे को देखने के बाद एक बेहद उत्साही पर्यटक ने कहा, “यह यात्रा कमाल की थी। मैंने राजाओं और उनके इतिहास के बारे में इतना कभी नहीं जाना था। टूर गाइड ने पर्यटक को इसके लिए धन्यवाद दिया।
यह बातचीत आपको बहुत सामान्य लग सकती है लेकिन इसमें आश्चर्य की बात यह है कि यह बातचीत सांकेतिक भाषा में की गई। जो एक वीडियो के द्वारा सम्भव हो सकी। इसके बारे में लोगों को तब पता लगा जब दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों ने इसकी शुरूआत कर इसे सोशल मीडिया पर डाल दिया।
इस काम की शुरूआत की है डेफ कॉम नामक कंपनी ने जो क्लस्टर इनोवेशन सेंटर (सीआईसी) के साथ से मिल कर काम कर रही है। इस कंपनी में नए स्नातकों को शामिल किया गया है जो तकनीक के माध्यम से बहरे लोगों का जीवन बदलने का हौसला रखते हैं।
ऐतिहासिक पर्यटन में स्नातक, मनीष नारायण जो कंपनी के संस्थापकों में से एक हैं, कहते हैं कि “हमने एक ऐसी एप्लीकेशन तैयार की है जो देश भर में बहरे और गूंगे लोगों को प्रसिद्द स्मारकों के बारे में जानकारी देगी। यह एप्लीकेशन उनके स्मार्ट फ़ोन के द्वारा उनकी मदद करेगी।”
अक्सर विकलांग लोगों को जिम्मेदारी की तरह देखा जाता है। लेकिन यह एप्लीकेशन उनके आत्मनिर्भर बनाएगा। मनीष ने अपने स्नातक के समय पर्यटन और सांकेतिक भाषा पर योजनाबद्ध तरीके से काफी काम किया। उन्होंने अपने साथियों के साथ मिल कर कई पर्यटन स्थलों की यात्रायें कर उनके सांकेतिक भाषा में वीडियोज बनाये और गूंगे बहरे लोगों की मदद की।
उनका कहना है कि “तकनीक का सबसे अच्छा फायदा यह है कि यह रास्ते में आने वाली हर दुविधा को सुलझा देती है।” वह बताते हैं कि “इस एप्लिकेशन में ‘मेरे टूर के हस्ताक्षर‘ नामक एक विकल्प है जहाँ हर भाषा में जानकारी दी गई है। इसके द्वारा न सिर्फ विकलांग लोग बल्कि अन्य लोग भी इस एप्लीकेशन का फायदा उठा सकते हैं। इसकी मदद से कोई भी बिना किसी पेशेवर गाइड के अपनी यात्रा कर सकता है।“
फोटो और लेख साभार:यूथ की आवाज़