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जब रक्षक ही हों दहशत में

20151229_124038जि़ला लखनऊ। यहां के रिर्ज़व पुलिस लाइन के घर इतने जर्जर है कि उनमें रहना खतरों से खेलना है। इसी खतरे का षिकार जि़ला हरदोई के तितौरा गांव के अनिल अवस्थी को 28 दिसम्बर को होना पड़ा। उसके बाद लोगों में दहशत और बढ़ गई है। इनका चयन 1987 में आरक्षी चालक के रुप में हुआ था। लगभग डेढ़ साल से वह 1090 की गाड़ी चलाते थे। रविवार कि रात को अनिल जब रेलिंग से टेक कर खड़े हुए तो वह गिर गई। उन्हें ट्राॅमा सेंटर भर्ती किया गया जहां उनकी मौत हो गई। उसके बाद भी विभाग की आंखें नहीं खुलीं। यहां के भवन लगभग 85 साल पुरानी हैं।
यहां की कुछ महिलाओं ने नाम न छापने कि षर्त पर बताया कि यहां घर में सीलन इतनी है कि दिवाल के बगल से पानी भी निकलने लगता है। जगह जगह से दिवाल और छत ढ़ह रहे हैं।
एक बात जो हर किसी के मुंह से सुनने को मिली वो ये थी कि सरकारी घर है तो समझ ही सकते हैं कि कैसा होगा? भूकम्प में तो लोग सप्ताह भर बाहर ही सोए। इनको बनवाने के लिए कितने आवेदन दिए हैं षायद अब उनकी गिनती भी याद नहीं है। जो अधिकारी लेवल के लोग हैं उनके घर ही अच्छे हैं वरना लोग ऊपरवाले का नाम लेकर ही यहां रहते हैं। जो भी मरम्मत करानी है वो लोग अपनी ओर से ही कराते हंै। हालांकि मरम्मत का काम लगभग एक साल से चल रहा है। लेकिन इसकी रफ्तार इतनी धीमी है कि जब तक मरम्मत हो तब तक दूसरा घर गिरना षुरु हो जाएगा।
29 दिसम्बर को मुख्यमंत्री अखिलेष कुमार ने अनिल के परिजनों को बीस लाख रुपए मुआवजा देने कि घोषणा की है। साथ ही प्रमुख सचीव गृह से नई पुलिस लाइन बनने में देरी के कारणों का स्पष्टीकरण भी मांगा है।