हाल में के किए गए अध्ययनों में पाया गया है कि देश में महिला पत्रकार केवल 2.7 प्रतिशत हैं। पर अगर पत्रकारिता के इतिहास पर नज़र डालें तो पता चलता है कि आज़ादी की लड़ाई के साथ ही महिलाओं का इस पेशे में आना शुरू हुआ।
हेमन्त कुमारी देवी चैधरानी का जन्म 1868 में हुआ था। वे देश की पहली महिला पत्रकार बनीं। हेमन्त कुमारी महिला सशक्तिकरण पर छपने वाली पत्रिका ‘सुगृहणी’ की संपादक भी रहीं।
1960 के दशक के बाद देश में महिला कर्मचारियों की संख्या में परिवर्तन आया और खास तौर से पत्रकारिता में महिलाओं ने कदम रखा। इस पेशे में शुरुआत में मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग की महिलाओं से हुई। खासतौर से अंग्रेज़ी पत्रकारिता में महिलाओं को जगह मिलने लगी लेकिन हिंदी और क्षेत्रीय पत्रकारिता में मृणाल पांडे ने पुरुषों को टक्कर दी। क्षेत्रीय प्रेस में महिलाओं नज़र आईं लेकिन वे काफी हद तक डेस्क पर थीं।
ऊषा राय ने महिला पत्रकारिता के क्षेत्र में नई जान फूंकी। उन्होंने साल 1965 में पत्रकारिता में कदम रखा । उन्होंने मुख्यधारा अखबारों में महिलाओं के मुद्दों के बारे में लिखना शुरू किया।
1980 के दशक से दृश्य बदला। महिलाएं पत्रकारिता में बड़ी तादाद में आने लगीं। आज कई महिलाएं संपादक, रिपोर्टर और टेलीविजन एंकर के पदों पर काम कर रहीं हैं।
माया कामत का जन्म 1951 में मुम्बई में हुआ था। 1985 में वे व्यंग्य चित्रकार बनीं। यह ऐसा क्षेत्र था जिसमें केवल पुरुष पाए जाते थे। कई अखबारों में उनके चित्र छपने लगे। उन्होंने कई राजनैतिक मुद्दों पर चित्र बनाए।