छतरपुर जिले के देरी गांव में अंधेरी रात और उबड-खाबड़ सड़क पर निकलने ये क्यों लगता हैं डर?
छतरपुर के देरी गांव में एक सौ पचास खम्भे लगे हैं। तीस साल हो गये हैं लाइट आये हुए लेकिन मरकरी आज तक नहीं लगी है। यहां के लोगों का कहना है कि यहां मरकरी न होने से रात बिरात,कीड़े मकोड़े व दुर्घटना होने का डर रहता है। प्रदेश के सभी जिलों में ग्राम व शहरी क्षेत्र में रात के समय प्रकाश व्यवस्था को ठीक करने के लिए शुरू की गई मरकरी लगवाने की योजना पर अभी तक देरी गांव में मरकरी नहीं लगी है जिससे यहां रात में अंधेरा छा जाता है।
संदीप कुमार का कहना है कि कभी करेंट आ जाता है, बच्चें खेलते रहते है तो दुर्घटना का डर बना रहता है। गांव वाले भी आते जाते रहते है, बस हमें यही सारी समस्या है अगर यहां लाइट लग जायें तो हम रात में अपने आपको थोड़ा सा सुरक्षित महसूस करेगें और खतरे से भी बच पायेगें।
सुनीता ने बताया कि लाइट न होने के कारण न तो गड्ढ़े दिखते है तो क्या करे, अंधेरे में कुछ नहीं दिखता है।
कमल कुमारी का कहना है कि जब हम सुबह शौच के लिए आते है, तो गड्ढ़े में पैर पड़ने के कारण गिर जाते है और बच्चें व सभी ग्राम वासी भी गिर जातें हैं। अंधेरे में दिखता भी नहीं हैं, चाहे सांप काटे चाहे कुत्ता काटे।
जारम सिंह ने बताया कि जब से यहां लाइट लगी है तब से मरकरी नहीं लगी है, करीब तीस साल हो गये है। मरकरी न होने से न तो नाली दिखती है और न तो गड्ढ़े दिखते हैं। बहुत परेशनी होती है ऊबड़ – खाबड़ जमीन में कुछ दिखाई नहीं देता है।
सरपंच कौशलेन्द्र सिंह का कहना है कि पहले जो पूर्व सरपंच थे उनके समय में लाइट आई थी लेकिन पता नहीं उन्होंने लाइट होने के बावजूद मरकरी क्यों नहीं लगवाई है। किस कारण नही लगवाया हमें मालूम नही हैं।
मुख्य कार्यकारी अधिकारी छतरपुर सैयद मजहर अली का कहना है कि ग्राम पंचायत का प्रस्ताव लाकर उपलब्ध करा दे तो मै देखूंगा कि जो नियम है उसी के हिसाब से मरकरी लगाई जायेगी।
रिपोर्टर- अलीमा