नेपाल के तिमाल्सेना गाँव की 26 वर्षीय दम्बरा उपाध्याय की चौपदी नामक एक पुरानी परंपरा, जो मासिक धर्म से जुड़ी हुई है, को निभाते हुए निधन हो गया।
चौपदी वह प्रथा है जिसमें महिलाओं के साथ उनके मासिक धर्म के दौरान अपवित्र और अछूतों की तरह बर्ताव किया जाता है। इस समय महिलाओं को माहवारी के दौरान घरों में जाने की इजाजत नहीं दी जाती। उन्हें मंदिरों से भी दूर रहने के लिए कहा जाता है। वह पानी के सार्वजनिक स्रोतों का इस्तेमाल नहीं कर सकतीं, जानवरों का चारा भी नहीं छू सकतीं, शादी जैसे सामाजिक उत्सवों में शरीक नहीं हो सकतीं।
ये रिवाज यहीं खत्म नहीं होते। माहवारी वाली महिलाओं को जो व्यक्ति खाना देता है, वह भी इस बात का ख्याल रखता है कि भोजन तक का उसे स्पर्श न हो। माहवारी वाली महिलाओं को घर के भीतर सोने की इजाजत नहीं दी जाती। इसके बदले उन्हें घर के बाहर अमानवीय परिस्थितियों में रहना पड़ता है। नेपाल के सुदूर पश्चिमी इलाकों में कमोबेश हर जगह ऐसे ही हालात हैं।
इन महिलाओं को परिवार, संस्कृति, समुदाय और ईश्वर के भय के बारे में ज़रूर मालूम है और इसी वजह से वे इस परंपरा को तोड़ने से हिचकती रही हैं। भले ही महिलाएँ चौपदी को नापसंद करती हों लेकिन इसके बावजूद उन्होंने इस परंपरा को अपनी जिंदगी के एक हिस्से के तौर पर अपनाया हुआ है।
ऐसा नहीं है कि चौपदी से महिलाओँ को सिर्फ अलगाव और असहज परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। दम्बरा के जैसे ही कई अन्य कारणों से भी महिलाओं को अपनी जान गँवानी पड़ी है। सांप काटने से लेकर जंगली जानवरों तक के हमले और यहां तक कि परिवार से अलग रहने के कारण कुछ एक लड़कियों के साथ बलात्कार की घटनाएँ भी हुई हैं।