सरकार ने पूरे भारत देश में आचार संहिता 5 मार्च 2014 से लागू कर दई हे। आचार संहिता लागू करी गई हे प्रचार, प्रसार ओर नारेबाजी खे लाने, पे बुन्देलखण्ड में तो अधिकारियन ने आचार संहिता खा मतलबई बदल दओ हे।
हम बात करत हें महोबा जिला की। जिते आचार संहिता की आड़ में अधिकारियन खा काम रोके खा अच्छो खासो बहाना मिलो हे। गांव खेे सीधी-सादी जनता अगर आपन कोनऊ समस्या लेके अधिकारियन खे एते जात हे तो ऊं कहत हें कि अभे आचार संहिता लागू हे अभे कछू काम न होहे।
का आचार संहिता लागू करे खा मतलब जो हे कि कोनऊ काम न करें जेहें?
एक तो ऊसई अधिकारी ओर कर्मचारी आपन काम करें में लापरवाही करत हें। दूसर आचार संहिता खा बहाना भी मिल गओ हे। कोनऊ काम कराये खे लाने बजट पास तो होतई नइयां, पे जोन गांवन खे लाने कछू विकास खा काम कराये खे लाने बजट पास भी हो गओ हे। ओते भी काम बन्द परे हें।
अगर गांव खे लाने बजट पास हो गओ हे तो ओते काम काय नई कराओ जात हे? आचार संहिता चुनाव के माहौल में शान्ति बनाये राखे खे लाने लगाई गई हे। जीसे प्रचार-प्रसार करत समय कोनऊ तान खे दंगा जा फिर घटना न होय।
सरकार खे आचार संहिता लगाये से फायदा कीखा मिलो? अधिकारियन ओर कर्मचारियन खा? ई समय महोबा जिला की हालत जा हे कि अगर कोनऊ आदमी अधिकारी से दसकत भी करायें जात हे तो भी ऊं अधिकारी पेहले आचार संहिता के उपदेश सुनाउत हें।
का आचार संहिता लागू होय खे बाद आपन काम नई करो जात हे? जा फिर आपन जिम्मेदारी पूरी करें में भी आचार संहिता खा उल्लंघन मानो जात हे?
चुनाव खे बहाने काम में लापरवाही
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