सरकार ने आचार संहिता 22 सितम्बर से लागू कर दई हे। आचार संहिता लागू करी गई हे प्रचार प्रसार ओर शांन्ति व्यवस्था बनायें के लाने, जीसे प्रचार प्रसार के समय कोनऊतान को दंगा ओर घटना घटित न हों, पे बुन्देलखण्ड में तो अधिकारियन ने आचार संहिता खा मतलबई बदल दओ हे।
हम बात करत हे महोबा जिला की जिते आचार संहिता की आड़ में अधिकारियन खा काम रोके को अच्छो बहाना मिलो हे। गांव की सीधी साधी जनता अगर आपन कोनऊ समस्या लेके अधिकारियन के एते जात हे तो ऊं सीधो एई जवाब देत हे की अभे आचार संहिता लागू हे अीो कछू काम न हो हे।
सवाल जा उठत हे कि का आचार संहिता लगू करें को मतलब जा हे की कोनऊ काम न करो जेहे। एक तो ऊसे सरकारी कर्मचारी अपने काम में लापरवाही करत हें। दूसर आचार संहिता को को बाहाना मिल गओ। एक तो ऊसई गांव की हालत देखतई बनत हे दूसर अगर अब कोनऊ थोई बोहोत काम कराउत हे तो ऊ भी आचार संहिता को नाम देके बन्द परो हे। ई समय तो महोबा जिला की जा हालत हे कि अगर कोनऊ आदमी सरकारी आॅफिस जात हे दसखत कराउन तो ओते भी पेहले आचार संहिता के उपदेश सुनाउत हे। आचार संहिता लगायें से फायदा अधिकारियन ओर कर्मचारियन खा?
का आचार संहिता लागू होंय खे बाद आपन काम नई करो जात हे? जा फिर आपन जिम्मेंदारी पूरी करें में पछाऊं हट आचार संहिता को अल्लंघन मानो जात हे? ईखो जबाब के लाने महोबा जिला की जनता बोहतई उम्मींद के साथे करत हे।
चुनाव के बहाने काम में लापरवाही
पिछला लेख