गुजरात कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में राज्यसभा चुनाव में नोटा के इस्तेमाल के खिलाफ याचिका दायर की थी। जिसके जवाब में चुनाव आयोग ने कहा कि राज्यसभा चुनाव में नोटा सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार है ये प्रत्यक्ष अथवा आप्रत्यक्ष दोनों ही चुनावों पर लागू है।
चुनाव आयोग ने कहा कि 2014 में ही नोटा के प्रावधान के बारे में सभी राजनीतिक पार्टियों को जानकारी दे दी गयी थी और कांग्रेस ने अब इसे लेकर याचिका दायर की है। ये याचिका सुनवाई योग्य नहीं है इसे ख़ारिज कर देना चाहिए।
बता दे कि सुप्रीम कोर्ट ने नोटा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था लेकिन इस पर सुनवाई जारी रखी और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर जवाब माँगा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप राजनीतिक पार्टी है आपका कोई भी विधायक इसको चुनौती दे सकता था लेकिन आप इंतज़ार कर रहे थे कि आप प्रभावित हो।
कांग्रेस की ओर से कपिल सिब्बल ने जवाब में कहा था कि नोटा भ्रष्टाचार की विधि है। गुजरात में अब चुनाव हो रहे हैं तो वो कोर्ट में इसे चुनौती दे रहे हैं। सिब्बल का कहना था कि अगर नोटा का विकल्प हुआ तो कई विधायक अपनी पार्टी का निर्देश नहीं मानेंगे। वो अपनी पार्टी के खिलाफ भी वोट कर सकते हैं। ऐसे में नोटा का विकल्प हॉर्स ट्रेडिंग यानी विधायकों की खरीद फरोख्त को जन्म देगा। नोटा का विकल्प भ्रष्टाचार को बढ़ावा देगा
इस याचिका में कहा गया था कि कई बार वोटर किसी भी प्रत्याषी को पसंद नहीं करता है। लेकिन, मजबूरी में उसे किसी ना कसी को वोट देना पड़ता है। इसलिए एक ऐसा विकल्प होना चाहिए जिसमें जनता सभी प्रत्याशियों को नकार सके।इससे राजनीतिक दलों को भी बेहतर प्रत्याशी लाने पर मजबूर होना पड़ेगा। साल 2013 में इस मांग को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था। जनवरी 2014 में चुनाव आयोग ने इस बाबत नोटिफीकेशन जारी कर दिया और नवंबर 2015 से इसे सभी चुनाव में इसतेमाल किया जाने लगा।
याचिका में कहा गया है कि नोटा का प्रावधान संविधान में नहीं है और न ही कोई कानून है। यह सिर्फ चुनाव आयोग का सर्कुलर है। ऐसे में नोटा जनप्रतिनिधि अधिनियम 1951 का उल्लंघन करता है।