लोकसभा चुनाव अगले साल हैं। हर पांच साल में होने वाले ये चुनाव हमेशा से ही राजनीतिक हलचल पैदा करने वाले होते हैं। इस बार तो चुनाव को लेकर और ज्यादा हल्ला मचा है। कारण, प्रधानमंत्री पद की दावेदारी है।
ऐसे कई नेता हैं जो पिछले कई सालों से प्रधानमंत्री बनने के सपने देख रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के राहुल गांधी। इनके अलावा उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव समेत कई और क्षेत्रीय नेता हैं जो खुद ही अपना नाम आगे बढ़ाते रहते हैं।
आजकल मोदी और नीतीश के बीच इस पद को लेकर बयानबाजी शुरू है। नीतीश ने तो यहां तक कह दिया कि मोदी के मुख्यमंत्री रहते गुजरात में साल 2002 में धर्म के आधार पर दंगे हुए थे और मोदी प्रधानमंत्री बनने के काबिल नहीं हैं। इस पर मोदी की पार्टी भाजपा ने जवाब दिया कि गुजरात दंगों के समय नीतीश कुमार रेल मंत्री थे। गुजरात के गोधरा में साबरमती ट्रेन में आग लगाई जाने से हजारों लोग मरे थे। नीतीश चाहते तो इस घटना को रोक सकते थे। मोदी ने भी अपनी छवि सुधारने के लिए गुजरात दंगों में दोषी पाए गए माया कोडनानी और बाबू बजरंगी के लिए मौत की सज़ा की मांग की है। हालांकि माया कोडनानी मोदी का दायां हाथ समझी जाती रही हैं। बजरंगी पर भी मोदी की कृपा रही है। लेकिन राजनीति में कौन किसका हुआ है?
केंद्र में बैठी यू.पी.ए. सरकार भी क्षेत्रीय दलों को मनाने में जुटी है। नीतीश ने मौका देखकर बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा मांगा तो केंद्र सरकार ने बारह हज़ार करोड़ का स्पेशल पैकेज दे दिया। कुल मिलाकर चुनाव की तैयारियों में नेता हर तरह के हथकंडे अपना रहे हैं।
चुनावी दंगल में नेताओं की कुश्ती
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