जिला चित्रकूट, कस्बा कर्वी, मोहल्ला पासी 1अक्टूबर 2016। नवरात्र की शुरूआत हो चुकी है। दुर्गा अपने नौ रूपों के साथ चित्रकूट के घर और गलियों में सजने लगी हैं। इस अवसर में मेले की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं, दंगल होने लगे हैं और दुर्गा की मूर्ति बिठाने का समय आ गया है। तो चलिए त्यौहार के रंगों को और गहरा करने के लिए आपको ले चलते हैं, एक ऐसे व्यक्ति के पास जो पंडालों में सजने वाली दुर्गा की मूर्ति को बनाने का काम करते हैं।
मिलिए रितेश से, ये कर्वी कस्बे के पासी मोहल्ले में अपनी मूर्तियों को पूरा करने में लगे हुए हैं। आखिर कई मूर्तियों की बुकिंग हो चुकी है। इस बार खास मूर्तियों के साथ रितेश ने सूखे को ध्यान में रखते हुए सस्ती मूर्तियां भी बनाई हैं। रितेश की तीन महीने की मेहनत अब रंग लाने वाली है। पच्चीस साल के रितेश के चेहरे में थकान के साथ ख़ुशी भी झलक रही है। अपनी मूर्तियों की सजावट करते हुए वे हमें अपनी कला के सफ़र के बारे में बताते हैं।
के.एल – आप कब से मूर्तियां बना रहे हैं?
रितेश – मुझे स्कूल के समय से ही कला और मूर्तियां बनाने का शौक़ था। पढ़ाई में मेरा मन नहीं लगता था। कला का मेरा ये शौक़ धीरे-धीरे अब पूरा हो रहा है। मुझे इसी क्षेत्र में हमेशा और अच्छा करने की इच्छा रहती है, मैं दूसरे कलाकारों से भी सीखना चाहता हूँ।
के.एल – आपको यही काम क्यों इतना ज्यादा पसंद है?
रितेश – स्कूल के दिनों से ही मैं दूसरे बच्चों की कॉपी में भी चित्र बनाता था। अगर मुझे किसी विषय में काम मिलता था तो मैं करना भूल जाता था। पर अगर कोई कह दे कि कमल बनाना है, तो मैं सबसे पहले इस ही काम को करता था।
के.एल – आपके घरवाले तो आपको डांटते होंगे?
रितेश – हां, घरवाले डांटते थे और कहते थे कि पढ़ नहीं पाओगे, तो आगे क्या करोगे। मुझे खुद़ नहीं पता था कि मैं क्या करूंगा, क्योंकि मेरे अन्दर उतनी भी कला नहीं थी जितनी आज है। तो उस समय थोड़ी परेशानी घरवालों के साथ मुझे भी होती थी।
के.एल – आप बड़े शहरों के मूर्तिकारों की मूर्तियों को भी देखते हैं?
रितेश – जी बिल्कुल, मैं बड़े शहरों की मूर्तियों को देखता हूं। खासकर वो जो टीवी और महाराष्ट्र में गणपति की मूर्ति बनती हैं। मैं उनको देखता हूं और मुझे उनका लुक बहुत अच्छा लगता है। कलकत्ते की दुर्गा, जबलपुर की मूर्तियाँ और मुंबई के गणपति को मैं टी वे में गौर से देखता हूँ। फिर अपनी मूर्तियों में भी उनसे कुछ अंश उतारने की कोशिश करता हूँ।
के.एल – इन मूर्तियों की मिट्टी किसी खास जगह से आती है। आप ये मिट्टी कहां से लाते हैं?
रितेश – लोग कहते हैं कि वेश्या के आंगन या डेरे से ये मिट्टी लाई जाती है। पर हमने ऐसा कुछ नहीं सुना है और न हमें जिसने ये सिखाया उसने बताया। बंगाल से आये एक मूर्तिकार काशी पाल से हमने पूछा तो उन्होंने भी हमें कहा कि ऐसा कोई भी जिक्र नहीं है और न हमने कभी ऐसी किसी मिट्टी का प्रयोग ही किया है। मैं मूर्ति की मिट्टी बनकट से लाता हूं, जो कर्वी के शंकर बाजार के पास पड़ता है।
के.एल – अपने आज तक जितनी मूर्ति बनाई हैं, उसमें से आपकी सबसे पसंदीदा मूर्ति कौन-सी है?
रितेश – मैंने कई मूर्ति बनाई और अभी बनाई मूर्ति में मेरी सबसे पंसद की मूर्ति एक शेषनाग और दूसरी ड्रैगन वाली दुर्गा की मूर्ती है। जबकि पिछले साल की मूर्ति में एक महिषासुर मर्दिनी वाली थी, जो मेरे पंडाल की सबसे सबसे खूबसूरत मूर्ति रही है।
के.एल – क्या आपने इस साल पड़े सूखे को ध्यान में रखकर कोई मूर्ति बनाई हैं?
रितेश – सूखे को ध्यान में रखकर मैंने इस बार कम बजट की मूर्तियां बनाई हैं। मैंने साधारण मूर्तियां बनाई हैं, जिसमें शेर और मां दोनों की है। मैं सस्ती मूर्ति में उसकी कढ़ाई और गहने मिट्टी के न बनाकर कागज़ के बनाकर उसे सस्ता बना देता हूं। गाँव के लोग और गरीब लोग भी ये मूर्तियाँ खरीद सकते हैं।
के.एल – आपकी सबसे महंगी मूर्ति और सबसे सस्ती मूर्ति कितने तक की है? ये बनी मूर्तियां कितनी तारीख से जानी शुरू होंगी?
रितेश – मेरी सबसे सस्ती मूर्ति 3 हजार तक में है और सबसे महंगी मूर्ति 11 हजार की है। मूर्ति अगर 1 तारीख से बिठानी है, तो 30 तारीख से भी जाने लगेंगी और 1 को भी जाने लगेंगी।
के.एल – आप मूर्ति बनाने का काम अकेले करते हैं या आपके साथ और भी लोग हैं और क्या आपको मूर्ति बनाने के ऑडर पहले से मिलते हैं?
रितेश – ये अकेले का काम नहीं है, इसलिए एक-दो सहायक रखे हैं। हां, मुझे कुछ ऑडर पहले से मिलते हैं। मेरे कुछ स्थानीय ग्राहक हैं, जो पहले से बता जाते हैं कि ऐसे श्रृंगार वाली और कैसी डिजाइन वाली मूर्ति उन्हें चाहिए।
रिपोर्टर- नाजनी रिजवी
01/10/2016 को प्रकाशित