जिला चित्रकूट, ब्लाक कर्वी, गांव पहरा का रहै वाला संजय 2 जुलाई का आपन अउर अपने बच्चन का जहर खवा के कर्जा भरी जिंदगी से छुटकारा पावैं चाहत रहै, पै का जान दें से वा कर्जा भर जात, नही।
संजय का कहब हवै कि मोरे ऊपर ढाई लाख रुपिया का कर्जा हवैं। भरतकूप के क्रेशर मा ठेकदारी का काम करत रहौं। सात महीना से क्रेशर बंद हवैं। यहिसे मध्य प्रदेश के छतरपुर जिला मा काम करै खातिर गयेंव हंुवा भी कउनौ काम धंधा नहीं चला। हुंवा से लउट आयेंव, पै या चिंता रात दिन सताये रहत रहै कि कर्जा कसत भर जई। यहिसे मैं जहर लइके आयेंव अउर मिठाई मा मिला के मैं अउर अपने तीन बच्चन का खवा दीनेंव। औरत से कहेंव कि या मिठाई खा ले तौ वा कहिस कि अबै मैं घर का काम करत हौं धई देव थोइ देर मा खा लेहूं। मैं कहेंव के खा ले नहीं तौ पछतइहे। यहिसे मोर औरत का चिंता लाग के या इनतान काहे कहत हवै। वा जाके मिठाई देखिस कि आखिर का बात हवै या इनतान काहे कहत हवै। यहिसे वहिका शक होइगा अउर हम लोगन के तबियत बिगड़ै लाग तौ वा जिला अस्पताल लइ गे रहै यहिसे हम लोगन के जान बच गे हवै। मउके मा भरतकूप चौकी के दरोगा आय रहैं तौ उंई समझाइन। मोहिका लागत रहै कि अगर मैं मर जइहौं तौ मोरे बच्चन के कउन देखभाल करी।
संजय के औरत तारा का कहब हवै कि वा दिन मोहिसे कहिन कि या मिठाई खा लेव। मैं कहेंव कि मोहिका नहीं खाये का हवै। मोहिका या लाग कि आखिर कउन कारन हवै जेहिसे आज मिठाई खवावत हवै। मैं तुरतैं जा के देखेव तौ मिठाई मा जहर मिला रहैं। हम लोग गरीबी से परेशान आहीं। कर्जा से दबे हन ऊपर से रहैं खातिर एक कमरा हवै वहौ चुवत हवै। दुइ साल से वहिका नहीं छवावा हवै। सरकर हमार कउनौ मदद नहीं करत आय।
संजय का कहब हवै कि मोरे ऊपर ढाई लाख रुपिया का कर्जा हवैं। भरतकूप के क्रेशर मा ठेकदारी का काम करत रहौं। सात महीना से क्रेशर बंद हवैं। यहिसे मध्य प्रदेश के छतरपुर जिला मा काम करै खातिर गयेंव हंुवा भी कउनौ काम धंधा नहीं चला। हुंवा से लउट आयेंव, पै या चिंता रात दिन सताये रहत रहै कि कर्जा कसत भर जई। यहिसे मैं जहर लइके आयेंव अउर मिठाई मा मिला के मैं अउर अपने तीन बच्चन का खवा दीनेंव। औरत से कहेंव कि या मिठाई खा ले तौ वा कहिस कि अबै मैं घर का काम करत हौं धई देव थोइ देर मा खा लेहूं। मैं कहेंव के खा ले नहीं तौ पछतइहे। यहिसे मोर औरत का चिंता लाग के या इनतान काहे कहत हवै। वा जाके मिठाई देखिस कि आखिर का बात हवै या इनतान काहे कहत हवै। यहिसे वहिका शक होइगा अउर हम लोगन के तबियत बिगड़ै लाग तौ वा जिला अस्पताल लइ गे रहै यहिसे हम लोगन के जान बच गे हवै। मउके मा भरतकूप चौकी के दरोगा आय रहैं तौ उंई समझाइन। मोहिका लागत रहै कि अगर मैं मर जइहौं तौ मोरे बच्चन के कउन देखभाल करी।
संजय के औरत तारा का कहब हवै कि वा दिन मोहिसे कहिन कि या मिठाई खा लेव। मैं कहेंव कि मोहिका नहीं खाये का हवै। मोहिका या लाग कि आखिर कउन कारन हवै जेहिसे आज मिठाई खवावत हवै। मैं तुरतैं जा के देखेव तौ मिठाई मा जहर मिला रहैं। हम लोग गरीबी से परेशान आहीं। कर्जा से दबे हन ऊपर से रहैं खातिर एक कमरा हवै वहौ चुवत हवै। दुइ साल से वहिका नहीं छवावा हवै। सरकर हमार कउनौ मदद नहीं करत आय।
11/07/2016 को प्रकाशित
चित्रकूट जिले के पहरा गाँव के संजय ने 2 जुलाई को खुद और अपने तीन बच्चों को ज़हर खिला दिया
क़र्ज़, गरीबी और कर्जदारों का डर – इनसे जूझने से बेहतर क्या अपनी जान देना है?