कहा जात हवै कि जियें खातिर तीन चीज बहुतै जरूरी हवै- रोटी, कपड़ा अउर मकान। पै जेहिके लगे घर न होई तौ उंई कसत रहिहैं अउर जउन मड़ई पचास साल से जउन जघा मा रहत हवै वहिका खाली करावा जई तौ कसत लागी उंई मड़इन का। इनतान के हालत हवै चित्रकूट जिला, गांव ओबरी के चन्नाद मजरा मा रहै वाले आदिवासी मड़इन के।
राजकुमारी का कहब हवै कि जबै इंदिरा गांधी आई रहै, तबै हमें या जमीन दीन रहै। गांव के बाभन हमें मार-मार के निकालत हवै तौ हम कहां जई। गेंदालाल समेत कइयौ मड़ई बताइन कि मोतीलाल, सरजू, अरविन्द, रामचन्द्र, ननकू, जयकरन, संजय और छोट्टन महाराज हमें परेशान करत हवैं। लेखपाल, सेकेट्री अउर बीडीओ सबै आये हवैं अउर चाय पानी कइके चले गें हवैं। कउनौ सही गलत बतावै नहीं आये आहीं। लीलावती का कहब हवै कि सरकार हम जइसे गरीबन का ख्याल नहीं करत आय। सरकार हमें रहै का दें नहीं तौ आगी लगा दें।
कानूनगो मिस्री लाल का कहब हवै कि बिना देखे हम नहीं बता सकित कि जमीन कहिके नाम हवै। मड़इन के निकाले के सूचना अबै हमें नहीं मिली आय। प्रधानमंत्री आवास के तहत दुई-तीन आवास बनें मा रोक लगाई गे हवै। काहे से उंई आपन जमीन बतावत हवै तौ यहिमा हम कुछौ नहीं कइ सकित आय।
रिपोर्टर- सुनीता देवी
Published on Mar 7, 2018