जिला चित्रकूट, ब्लाक रामनगर, कस्बा रामनगर के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र मा बच्चा पैदा करावैं वाली औरतन का नास्ता, खाना अउर दवाई नहीं मिलत आय। ऊपर से अस्पताल के चादर गंदे अउर कउनौ भी व्यवस्था नहीं आय।
प्रभारी चिकित्साधिकारी शैलेन्द्र सिंह कहत हवै कि खाना रोजै दीन जात हवै। बिजली खातिर जनरेटर के सुविधा हवै। पानी खातिर बोर करवाव गा हवै, पै पाइप लाइन डरवावैं खातिर सरकार कइती से बजट नहीं आवा आय। या कारन से पानी के समस्या बनी हवै।
निशा का कहब हवै कि 8 जून का सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र मा बच्चा पैदा करावैं आई रहौं। हुंवा मोर लड़की पैदा भे रहै। सरकार कइती से जननी सुरक्षा योजना के तहत सुबेरे नास्ता अउर दुपहरी के खाना नहीं मिला आय। मड़ई या सोच के हिंया आवत हवै कि सुविधा मिली पै हिंया तौ पलंग मा चादर भी नहीं बिछी रहै।
अपने घर से चादर ला के पलंग मा बिछावै का परा हवै। ऊपर से सौ रुपिया के दवाई गोली खरीद के लावै का परत हवै।
चंद्रकली कहिस कि सरकारी अस्पताल से नींक हवै कि आपन घर मा बच्चा पैदा करवा लेहूं। काहे से कि ए.एन.एम. गुस्सात हवै अउर उल्टी सीध बातैं करत हवै। घर मा तौ प्रेम मिलत हवै।
संपतिया कहत हवै कि मजूरी करैं वाले मड़ई आहिन। अस्पताल या सोच के आय रहेन कि हिंया बच्चा के नारा काटैं का ब्लेट अउर दस्ताना के सुविधा मिली, पै हमका तौ अपने रुपिया से इं सबै चीजैं खरीदैं का परा हवै। मोर पेट मा पीरा होत हवै। यहिसे इंजेक्शन बाहर से मंगवाये हौं, पै इंजेक्शन लगवावैं खातिर ए.एन.एम. का पता नहीं आय कि कहां चली गे हवै।
आशा कार्यकर्ता मीरा देवी कहिस कि केन्द्र मा कउनौ सुविधा नहीं आय। यहिके खातिर अगर डाक्टर से कहित हन तौ वा कहि देत हवै कि हम का करी। बजट अई तबहिने तौ काम होइ।
दाई सुखिया का कहब हवै कि मैं सात साल से हिंया बच्चा पैदा करवावत हौं। पलंग के चादर बदले जात हवैं अउर हरतान के साफ सफाई रहत हवै।
प्रभारी चिकित्साधिकारी शैलेन्द्र सिंह कहत हवै कि खाना रोजै दीन जात हवै। बिजली खातिर जनरेटर के सुविधा हवै। पानी खातिर बोर करवाव गा हवै, पै पाइप लाइन डरवावैं खातिर सरकार कइती से बजट नहीं आवा आय। या कारन से पानी के समस्या बनी हवै।
निशा का कहब हवै कि 8 जून का सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र मा बच्चा पैदा करावैं आई रहौं। हुंवा मोर लड़की पैदा भे रहै। सरकार कइती से जननी सुरक्षा योजना के तहत सुबेरे नास्ता अउर दुपहरी के खाना नहीं मिला आय। मड़ई या सोच के हिंया आवत हवै कि सुविधा मिली पै हिंया तौ पलंग मा चादर भी नहीं बिछी रहै।
अपने घर से चादर ला के पलंग मा बिछावै का परा हवै। ऊपर से सौ रुपिया के दवाई गोली खरीद के लावै का परत हवै।
चंद्रकली कहिस कि सरकारी अस्पताल से नींक हवै कि आपन घर मा बच्चा पैदा करवा लेहूं। काहे से कि ए.एन.एम. गुस्सात हवै अउर उल्टी सीध बातैं करत हवै। घर मा तौ प्रेम मिलत हवै।
संपतिया कहत हवै कि मजूरी करैं वाले मड़ई आहिन। अस्पताल या सोच के आय रहेन कि हिंया बच्चा के नारा काटैं का ब्लेट अउर दस्ताना के सुविधा मिली, पै हमका तौ अपने रुपिया से इं सबै चीजैं खरीदैं का परा हवै। मोर पेट मा पीरा होत हवै। यहिसे इंजेक्शन बाहर से मंगवाये हौं, पै इंजेक्शन लगवावैं खातिर ए.एन.एम. का पता नहीं आय कि कहां चली गे हवै।
आशा कार्यकर्ता मीरा देवी कहिस कि केन्द्र मा कउनौ सुविधा नहीं आय। यहिके खातिर अगर डाक्टर से कहित हन तौ वा कहि देत हवै कि हम का करी। बजट अई तबहिने तौ काम होइ।
दाई सुखिया का कहब हवै कि मैं सात साल से हिंया बच्चा पैदा करवावत हौं। पलंग के चादर बदले जात हवैं अउर हरतान के साफ सफाई रहत हवै।
11/07/2016 को प्रकाशित
चित्रकूट के रामनगर का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र खुद बीमार!
कौन करेगा इसका इलाज?