जिला चित्रकूट, ब्लॉक मानिकपुर, गांव सकरौंहा, 23 दिसम्बर 2016। 150 लोगों की आबादी वाला सकरौंहा गांव एक सरकारी हैंडपम्प पर अपनी सारी जल सम्बन्धित जरुरतों के लिए आश्रित है। ये गांव दलित और आदिवासी बहुलक गांव हैं, इसलिए यहां के निवासी अपने खुद के निजी हैंडपम्प नहीं लगा सकते हैं। इस हैंडपम्प के खराब होने की स्थिति में लोग एक बूंद पानी के लिए भी तरस जाते हैं और दूसरे गांवों से लम्बी दूरी तय करके पानी जमा करने का काम करते हैं।
18 साल के सारदा इस इकलौते हैंडपम्प के खराब होने की स्थिति में 200 किलोमीटर के फसले में पड़ने वाले हैंडपम्प से पानी आने की बात कहते हैं।
150 लोगों की इस हैंडपम्प पर निर्भरता के कारण ये आए दिन खराब होता रहता हैं। रजनी, 45, कहते हैं, “ये हैंडपम्प दो महीने ही सही तरह से चल पाता है, जिसके बाद इसकी मरम्मत करनी ही पड़ती हैं। अभी 10 दिन पहले ही इसको ठीक करवाया हैं।”
कई बार शिकायत कर चुकी 25 के राजवन इस समस्या का जवाब चुनाव के समय देने की बात कहते हैं। वह कहते हैं, कुर्सी मिलने के बाद सब लोगों की समस्या को कोई नहीं देखता है। राजवन इस समस्या पर बहुत गुस्से में हैं।
गांव के प्रधान हीरा लाल के पास इस समस्या के लिए कोई सही जबाव नहीं हैं, क्योंकि उनका काम उनका सहायक पिन्टू नाम का एक युवक करता है। वह गांव वालों की इस समस्या पर बड़ी अज्ञानता से कहते हैं, “ये तो जमीन की समस्या है। इसमें क्या कर सकते है। हमने तीन हैंडपम्पों को दिखवाया पर उसमें पानी नहीं आ रहा है।”
रिपोर्टर- मीरा जाटव और नाजनी रिजवी
19/12/2016 को प्रकाशित