जि़ला चित्रकूट, ब्लाॅक कर्वी, गांव खोह। खोह की दूरी कर्वी से लगभग पांच किलोमीटर है। विकास को लेकर इस गांव की स्थिति अच्छी नहीं है। इस गांव को डी.एम. नीलम अहलावत ने ग्यारह महीने पहले गोद लिया था। गोद लेने का उद्देश्य था कि गांव में कुपोषित बच्चों को एन.आर.सी. विभाग में भर्ती किया जाए और हर बच्चा स्वस्थ्य रहे। लेकिन गांव में अब भी कुपोषित बच्चे हैं।
गांव की दलित बस्ती की कमला का कहना है कि ‘गरीबी के कारण बच्चों को अच्छा खाना नहीं खिला पाती हूं। पति मज़दूरी करता है, वह भी रोज़ नहीं मिलती है। मेरे दो बेटे कुपोषित हैं। दीपक और अरविंद। दीपक की उम्र लगभग दो साल और अरविन्द की तीन साल है। अरविन्द के शरीर में आठ महीने से सूजन थी। इतना पैसा नहीं कि अच्छे डाॅक्टर को दिखा सकूं। आशा कार्यकर्ता माया वर्मा से कहा तो उसने बताया कि अरविन्द कुपोषित है। इसको एन.आर.सी. में भर्ती करो। दीपक मिट्टी खाता था। उसके हाथ-पैर पतले और पेट खूब निकल आया था। वह भी कमज़ोर था। आंगनबाड़ी बच्चों को पोषाहार नहीं बांटती है। अगर बच्चों को पोषाहार बांटे तो बच्चे कुपोषण से बच सकते हैं।’
गांव की एक और महिला, रेखा बताती हैं कि ‘नवनीत आठ महीने का है। वह कमज़़ोर है। उसको बुखार रहता है। इलाज नही कराया है। पति एन.आर.सी. विभाग में बच्चे को भर्ती नहीं करने देता है। कहता है कि घर में दो और बच्चों को कौन संभालेगा? मैं और आशा कार्यकर्ता माया समझा कर थक गए।’
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता कल्याण देवी का कहना है कि ‘अभी मेरे क्षेत्र में कोई भी बच्चा कुपोषित नहीं है। आंगनबाडी तो पंजीरी भी नहीं देती है। जो बच्चे कुपोषित थे वे सही हो गए हैं।’ खोह गांव की सुपरवाइज़र गौरादेवी का कहना है कि ‘यहां दो आंगनबाड़ी केन्द्र हैं। एक आंगनबाड़ी में दो बच्चे कुपाषित हैं। दूसरी आंगनबाड़ी दलित बस्ती में कल्याण देवी के पास है। उसके रजिस्टर मे एक भी कुपोषित बच्चा नहीं है।’
एक एन.जी.ओ. के तहत गांव में 7 दिसंबर को हाॅरलिक्स के डिब्बे बच्चों को बांटे गए थे। एन.आर.सी. विभाग के सी.एम.एस. डाॅक्टर एम.के. गुप्ता से फोन पर बात की गई तो उन्होंने यह कहकर फोन काट दिया कि अभी मैं खोह गांव के कुपाषित बच्चों के बारे में कुछ बता नहीं सकता हूं। डी.एम. नीलम अहलावत से इस खबर को लेकर बात करने की कई बार कोशिश की गई पर हो नहीं पाई है।
ठवग . भारत में अस्सी लाख बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। एक बच्चा हर मिनट कुपोषण से मर रहा है। इंडिया हेल्थ रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में हालात देश के कई दूसरे राज्यों की तुलना में काफी खराब हैं। उदाहरण के लिए समन्वित बाल विकास योजना के अंर्तगत मिलने वाला भोजन उत्तर प्रदेश में पांच में से एक बच्चे तक पहुंचता है जबकि ओडिसा में ये नब्बे प्रतिशत बच्चों तक पहुंचता है।