चित्रकूट अउर बांदा जिला मा या समय बहुतै ज्यादा बच्चा कुपोषित देखै का मिलत हवै। अब या बात सउहें आवत हवै कि आखिर बच्चा कुपोषित काहे का होत हवै। एक बात से या पता चलत हवै कि एक तौ महंगाई मड़इन के कमर तोड़ै मा लाग हवै। दूसर जउन बची कुछी कसर रही जात हवै वा जिलन मा सूखा परै का कारन हवै।
सरकार कइती से गरीब अउर पात्र मड़इन का जउन योजना का लाभ मिलत हवै। वा अपात्र अउर रुपिया वाले मड़इन के मारे गरीब अउर पात्ऱ मड़इन का लाभ नहीं मिल पावत हवै। अगर सच्चाई का जानै तौ बच्चा पैदा करै वाली औरतन का कत्तौ समय से चौदह सौ रुपिया का चेक नहीं मिल पावत हवै। अगर उनका या चौदह सौ रुपिया समय से मिल जाये तौ उंई आपन खवाई पिवाई कइ सकत हवै, पै या चौदह सौ रुपिया न मिलै के कारन औरतैं प्राथमिक अउर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के चक्कर लगावत रही जात हवै? यहिके बाद उंई या सोचत हवैं कि अगर रुपिया मिली कि नहीं? कुपोषण का खतम करै खातिर सरकार कइती से आंगनबाड़ी के व्यवस्था भी कीन गे हवै अउर बच्चन का पढ़ावै के भी व्यवस्था हवै, पै या आंगनबाड़ी केन्द्र भी समय से न खुलै अउर पंजीरी का वितरण नींकतान से नहीं होइ पावत हवै। यहिसे सकरार के चलाई गे योजना के धज्जी उड़त देखाई देत हवै। सराकर इं सबै नियम का लागू कइके कहां सो जात हवै। का वहिका या नहीं देखाई देत हवै कि कउन से योजना कछुआ के चाल चलत हवै अउर कउन से योजना का लाभ गरीब अउर पात्र मड़इन का मिलत हवै?
चलै कछुआ के चाल, कुपोषित बच्चा रहैं बेहाल
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