जिला महोबा, क़स्बा कुलपहाड़ इते जंगल में ओरते तेंदू के पत्ता टोरती। जे पत्ता बीड़ी बनाबे के काम आत। ओरते सुबेरे छह बजे से ग्यारह बजे तक पत्ता टोरती और एसे घाम में मुढ़ी पे रख के पांच किलो मीटर पैदल चल के जाती।
जे पत्ता जंगल से टोर के घर में पत्ती छांट के पुड़िया बनाती। कत के ओरते काम नइ कर सकती लेकिन जो इतनो बड़ो काम हे ऐसे घने जंगल में आबे के लाने डर हे। लेकिन बे नइ डराती बे सोचती के अगर हम डरा हे तो का कर हे।
सेजी ने बताई के एक दिना में चार पांच सौ बीड़ी बना लेत अस्सी रुपइया की हो जाती। हम जो बीड़ी बनाबे को काम बारह तेरह साल से कर रए। बरसात के चार महीना में बनात चार महीना बाद अगर कछू मजूरी लग गयी तो करयात नइ तो अपने जेई बनात रत।
रहिस बानो ने बताई के हमनो न खेती हे न पाती हे न घर मकान हे जे टपरिया डरी। दवाई तक नइ करा पा रए। पत्ती बेच बेच के खर्च चला रए। कछू पत्ती बेच देत कछू की बीड़ी ना लेत।
पैदल लेयात मुड़ी से पांवन में सूजन तक आ जात बीड़ी बनात बनात हमे दस साले हो गयी। हमने जो काम मुहल्ला वालिन से सीखो तो। बना के फिर इतेइ बेच देत।
रिपोर्टर- श्यामकली
19/05/2017 को प्रकाशित