पूर्वा भारद्वाज लंबे समय से जेंडर, शिक्षा, भाषा आदि मुद्दों पर काम कर रही हैं। साहित्य में उनकी खास रुचि है। इन दिनों वे दिल्ली में रह रही हैं।
मेरी खेलों में दिलचस्पी नहीं है। अपने भैया की तरह मुझे क्रिकेट का नशा नहीं था। बाद में समझा कि खेलों की पूरी राजनीति है।
कौन क्या खेल खेलेगा, कहां खेलेगा, कब खेलेगा, किसके साथ खेलेगा इन सबका अलग अलग नियम है। स्कूल तक में लड़का और लड़की के खेल बंटे हुए हैं। फिर खेल के साथ देश का मामला जुड़ जाए तब तो और घुमावदार हो जाता है।
इधर क्रिकेट का वर्ल्ड कप मैच हो रहा है। इसमें दुनिया के बहुत देश खेल रहे हैं। इसी प्रतियोगिता में 15 फरवरी को भारत और पाकिस्तान का मैच हुआ। दोनों देशों की टीम मज़्ाबूत हैं, इसलिए कौन जीतेगा इसको लेकर लोग तनाव में रहते हैं। यही नहीं, इसको लोग देश की इज़्ज़्ात का मामला बना देते हैं। और तो और दोनों देशों का क्रिकेट मैच मानो दो धर्म के लोगों के बीच का खेल बन जाता है। खेल खेल नहीं रह जाता है।
भारत और पाकिस्तान के क्रिकेट मैच को लेकर जो चुटकुले चल रहे हैं, उन पर गौर कीजिए। वे नफरत भरे हैं, ज़्ाहरीले हैं। उन पर हंसना मुश्किल है।
हमें खेल के साथ चुटकुलों की राजनीति भी समझनी होगी। जैसे जब क्रिकेट मैच में भारत जीत गया तो एक चुटकुला चला कुदरत के क्या अजीब अजीब खेल होते हैं! ‘जिन्हें बम फोड़ने से खुशी मिलती है उन्हें खुशी में बम फोड़ने के मौके नहीं मिलते।’ यह पाकिस्तान की क्रिकेट टीम की हार पर हंसना भर नहीं है। इसमें अपने पड़ोसी देश पर आरोप है। इसी तरह यह टिप्पणी देखिए – ‘बल्ला संभलता नहीं इनसे…ये कश्मीर लेंगे!’ इस ललकार में क्रिकेट का खेल तो गुम ही हो गया है।
हम इन सब पर नहीं हंस सकते हैं। हंसना जि़्ान्दगी के लिए ज़्ारूरी है। लेकिन हम किस पर और क्यों हंसते हैं, यह सोचना होगा। सबसे ज़्यादा चुटकुले औरतों पर होते हैं। आखिर क्यों, यह भी सोचिए!