अगर कोई पुरुष अपनी पत्नी को मारता है या उस पर हिंसा करता है तो वह कानून की आंखों में अपराधी होगा। अगर कोई पति अपनी पत्नी का बलात्कार करे, भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत वह अपराध नहीं है। इस धारा में बिना पत्नी की सहमति के जबरदस्ती उसके साथ संबंध बनाना अपराध नहीं है। इस धारा से मजबूर बहुत से ट्रायल कोर्ट के जज शादी में बलात्कार के मामलों में धारा 354 और धारा 377 का इस्तेमाल करते हैं। धारा 354 यानी किसी औरत पर बलात्कार के अलावा अन्य यौन हिंसा, धारा 377 यानी बिना सहमति के अप्राकृतिक तरीकों से यौन संबंध बनाना।
बलात्कार के मामलों में जिस तरह से स्पष्ट कानून और कानूनी कार्रवाई की प्रक्रिया मौजूद है, वैसी शादी के रिश्ते में हुए बलात्कार के लिए नहीं मौजूद नहीं है। इस तरह के मामलों में बलात्कार का सामना करने वाली महिला के लिए सुरक्षा, मुआवजे या फिर व्यवस्थित कानूनी प्रक्रिया है ही नहीं, लेकिन 354 और 377 के जरिए कुछ न्याय मिल रहा है।
सभी राजनीतिक पार्टियों में भी शादी के रिश्ते में हुए बलात्कार को लेकर बहुत कम चिंता दिखाई देती है। इस तरह के अपराध को लेकर पितृसत्तात्मक रवैया ही दिखाई देता है। पत्नी के साथ पति के संबंध को उसका निजी मसला माना जाता है। पत्नी से यौन संबंध उसका अधिकार माना जाता है, फिर चाहें वह हिंसा के बल पर ही क्यों न बनाया जाए। इस सबंध में आज भी हम अंग्रेजों के समय के कानून को ही चला रहे हैं।
यौन हिंसा के कानून या फिर कानूनी धाराओं में जो भी अब तक बदलाव हुए हैं उनके पीछे कई महिला आंदोलनों का बहुत बड़ा योगदान है। संविधान के अनुसार आपसी सहमति शारीरिक संबंध या यौन संबंध बनाने का मूलभूत नियम है। बिना सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की वस्तु नहीं है पत्नी। शादी दो व्यक्तियों के बीज सहमति का रिश्ता है। अदालतों या फिर विधायिकाओं को चाहिए कि शादी के रिश्ते को उसकी मूल भावना के साथ ही समझें। उसमें जोर जबरदस्ती या हिंसा के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए।