जया शर्मा जेंडर और यौनिकता के मुद्दों पर लिखती हैं, शोध करती हैं और ट्रेनिंग देती हैं। उन्होंने बीस साल निरंतर संस्था में जेंडर और शिक्षा पर काम किया।
एक प्रेम कहानी। मीलों दूर रहते थे दोनों। एक हिंदुस्तान में, एक अमेरीका में। दोनों बेहद खूबसूरत थे। एक दिन मुलाकात हुई। प्यार हुआ। एक दूजे के बिना रह नहीं सकते थे। पर मां-बाप सख्त खिलाफ थे…आगे क्या हुआ? पता नहीं। मैंने सिर्फ ट्रेलर देखा है। फिल्म की बस एक झलकी। फिल्म तो इस हफ्ते बैन कर दी गई। रोक लगाने का कारण-फिल्म के यह दोनों प्रेमियों का एक ही जेंडर का होना था। यह दोनों ही औरतें थीं। सरकार के द्वारा बैठाई सेंसर बोर्ड कमेटी ने फिल्म देखकर कहा कि इससे लोगों के मन में अप्राकृतिक उत्तेजना जाग उठेगी। वह ऐसी इच्छाओं की बाढ़ में बह जाएंगे, जिन्हें महसूस भी करना प्रकृति के नियमों के खिलाफ है। यह खबर पढ़कर मुझे याद आई वो दो लड़कियां जो एक दूसरे से प्यार करती थीं। मां-बाप उनका रिश्ता तोड़ना चाहते थे। दोनों ने तय किया। साथ न जी सके तो साथ मरना सही। ऐसी दो नहीं न जाने कितनी जानें गईं। प्यार क्या, प्यार करने वाले ही मिटा दिए जाते हैं। फिल्म को बैन करने वालों ने भी तो यही किया। इस तरह के प्यार को गलत ठहराया और उसकी कहानी को बैन कर दिया। फिर वही बात-कौन क्या देखे। क्या खाए, किस बात पर हंसे-ये कोई और तय करेगा। गाय के गोश्त पर लगी रोक पर सवाल उठा था-आखिर ऐसा क्यों? वहां मामला था, धर्म और जाति की सत्ता का। जिसके हाथ में ताकत है-वो जो चाहते हैं-वैसा ही होना चाहिए।
लेकिन चाहतें तो एक नहीं-अनेक हैं। शायद इतनी कि हम आप उन्हें गिन भी न पाएं। चाहत खाने से जुड़ी हो या फिर किसी व्यक्ति से। हमें क्या भाता है, कौन भाता है, हम किस ओर खिंचे चले जाते हैं-इस पर शयाद हमारा भी कोई जोर नहीं। लेकिन वो हैं जो रोक पर रोक लगाए जा रहे हैं।