पूर्वा भारद्वाज दिल्ली में रहती हैं। एक लम्बे समय से वे महिलाओं के मुद्दों व अन्य सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर काम करती आई हैं। उन्हें साहित्य भाषाओं की पढ़ाई में विशेष रुचि है और लिखने का शौक है।
बर्तन से हमारा रिश्ता अजीब है। बर्तन से जुड़ी रहती हैं, लोगों और जगहों की यादें। इसीलिए टूटे-घिसे बर्तनों का मोह खूब होता है। मुझे शादी के बाद घर छूटने में अपने बर्तनों से छूटना अभी तक दुख देता है। क्या लड़की को बर्तन की तरह ही एक जगह से दूसरी जगह जाना है? ससुराल में बर्तनों से धीरे धीरे दोस्ती होती है। यहां तक कि अपने नए घर यानी ससुराल को आपने कितना अपनाया है, इसका पता भी इस बात से लगाया जाता है कि आपको वहां के बर्तनों की कितनी जानकारी है। बर्तनों को उनके समुदाय से मिलाने और दूसरे समुदाय से अलग करने का हुनर भी आपको आ जाता है। उदाहण कटोरी-कटोरी एक साथ। चम्मच चम्मच एक साथ। बात बेहद सीधी और सपाट है। रसोंई से खूंटे की तरह औरतों को बांधे रखने का बहाना हैं बर्तन ? क्या बर्तन स्त्री धन है ? मजे़दार बात यह है कि बर्तनों की रखवाली करने वाली औरतों का इन पर कोई हक नहीं होता। मायके से मिले बर्तनों को ननद की शादी में बिना पूछे दे दिया जाता है। बंटवारे के समय किसको क्या बर्तन मिलेगा यह मर्द ही तय करते हैं। आखिर बर्तन हमारी संपत्ति और धरोहर दोनों हैं। किसी से विरोध जताने की भाषा हैं, बर्तन। गुस्से से भरी मां बर्तन का ढेर लेकर बैठ जाती थीं। बर्तन धोते वक्त आने वाली आवाज से पता चल जता है कि गुस्सा कितना है? कुछ बुरा लगते ही मर्द फौरन थाली फेंक देते हैं। छुआछूत का हथियार हैं, बर्तन। पंडित जी आचमनी से दूर से प्रसाद देते हैं। गरीब के लिए भी लोग अलग बर्तन रखते हैं। बर्तन की साझेदारी प्रेम दिखाने का तरीका है। पति के जूठे बर्तनों में पत्नी खाए तो धर्म। आखिर में सवाल यह है कि बर्तनों की दुनिया में औरतों का हक कहां है?