ममता जैतली राजस्थान में कई सालों से सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे लम्बे समय से नारीवादी आन्दोलन का हिस्सा रही हैं। उन्होंने 1998 में विविधा न्यूज़ फीचर्स की शुरूआत की थी जो महिलाओं पर हो रही हिंसा, और राजनीति में महिलाओं की भागीदारी पर फोकस करती है। वे राजस्थान में ‘उजाला छड़ी‘ नाम का अखबार प्रकाशित करती हैं जो विकास और अन्य स्थानीय मुद्दों पर खबरें छापता है
परिवार शब्द सुनकर मन में आ जाते हैं कुछ ऐसे शब्द – प्यार स्नेह, सुरक्षा, सहारा, विश्वास। शिवी के लिए परिवार शब्द कुछ और ही मायने रखता है। वो कहता है- ‘मैं अपने परिवार में सुरक्षित नहीं हूं। मेरे परिवार वाले मुझसे इतना झूठ बोल चुके हैं कि मैं अब उन पर बिल्कुल विश्वास नहीं करता।‘ झूठ बोलकर ही शिवी के मां बाप उसे अमेरिका से हिंदुस्तान लाए थे। उन्हें यह कुबूल ही नहीं था कि शिवी लड़की पैदा हुई लेकिन खुद को लड़की नहीं मानता। उन्हें यह भी कुबूल नहीं था कि उसे एक लड़की से प्यार है। उन्होंने शिवी के साथ मानसिक और शारीरिक हिंसा की।
शिवी के साथ जो हुआ वह कोई अनहोनी बात नहीं। दूसरी जाति या धर्म के व्यक्ति से प्यार होने पर भी परिवार की हिंसा के सामने आती है। कोई अपनी औलाद के साथ ऐसा कैसे कर सकता है? कहां गया मां बाप का प्यार? लेकिन शायद बात यह नहीं कि इन रिश्तों में प्यार है कि नहीं। अक्सर प्यार के नाम पर ही यह सब होता है। मां बाप बिना बेटी की मर्जी जाने कहते हैं कि बेटी तू इस रिश्ते में खुश रहेगी। लड़के की मर्जी के खिलाफ किसी नौकरी पर जोर डालते हैं, कहते हैं कि हम तुम्हारा भला सोच रहे हैं। प्यार और भलाई जैसे शब्दों के बादल में कहीं यह बात छिप जाती है कि मां बाप की मान्यताएं अक्सर उनके इर्द गिर्द के समाज की ही मान्यताएं होती हैं। डर सिर्फ इस का बात नहीं कि लोग क्या कहेगंेे! बात खुद की इज्जत की भी है। जब मां बाप को लगता है कि उनकी औलाद उनके बनाए रास्ते से भटक रही है तो उम्र की सत्ता काम में आती है।
शिवी की मां जानतीं थीं कि शिवी के पास न पैसे हैं और न ही अपनी पहचान के कोई कागजात। तभी उन्होंने शिवी से कहा कि घर के दरवाजे पर ताला तो नहीं लगा। शिवी एक संस्था से मदद पाने में कामयाब रहा। अपने परिवार की पहुंच से बाहर शिवी कहता है- अब मैं सुरक्षित हूं।