ममता जैतली राजस्थान में कई सालों से सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे लम्बे समय से नारीवादी आन्दोलन का हिस्सा रही हैं। उन्होंने 1998 में विविधा न्यूज़ फीचर्स की शुरूआत की थी जो महिलाओं पर हो रही हिंसा, और राजनीति में महिलाओं की भागीदारी पर फोकस करती है। वे राजस्थान में ‘उजाला छड़ी‘ नाम का अखबार प्रकाशित करती हैं जो विकास और अन्य स्थानीय मुद्दों पर खबरें छापता है।
पंचायती राज संस्थाओं में औरतों की मुसीबतों का अंत नहीं है। साल 1995 में राजस्थान में तैंतिस प्रतिशत पदों पर उन्हें आरक्षण दिया गया। साल 2009 में इसे बढ़ाकर पचास प्रतिशत कर दिया गया। कई औरतों ने बड़ी हिम्मत से राजकाज चलाया है। किसी ने दारू के ठेके बंद करवाए, किसी ने पुलिस की वसूली बंद करवाई तो किसी ने अवैध कब्जे हटवाए। मगर सरकार अपने आदेशों से उनकी राहों में नए नए रोड़े लगा रही है। पहली बड़ी मुसीबत थी दो से अधिक बच्चों का कानून।
साल 1994 में पंचायती राज कानून में ही यह शर्त लगा दी गई थी। इस नियम का बहुत विरोध हुआ। बाद में हिमाचल प्रदेश, हरियाणा आदि कई राज्यों ने यह नियम वापस ले लिया मगर राजस्थान में अब भी यह नियम है। पिछले साल एक नई गाज गिरी। चुनावों की घोषणा से चार दिन पहले राज्य सरकार एक अध्यादेश ले आई। 20 दिसंबर 2014 को बड़े गुपचुप तरीके से शिक्षा की योग्यता को लागू कर दिया गया। 24 दिसंबर 2014 को राजस्थान चुनाव आयोग ने आगामी चुनावों की अधिसूचना जारी कर दी। अध्यादेश में जिला परिषद सदस्यों के लिए दसवीं। सरपंचों के लिए आठवीं और आदिवासियों के लिए पांचवीं तक पढ़ा होना जरूरी कर दिया गया। राजस्थान विधानसभा या मंत्रिमंडल से चर्चा किए बिना पंचायतीराज प्रतिनिधियों के खिलाफ यह चाल चली गई है। आज भी राजस्थान विधानसभा में तेईस निरक्षर विधायक शामिल हैं। मगर पंचायतों के लिए शैक्षिक योग्यता की ऐसी क्या जरूरत पड़ गई? इस अध्यादेश को इतनी जल्दबाजी में क्यों लाया गया?
– बच्चों को शिक्षा का हक देने में नाकाम सरकार ने अपनी इस असफलता का ठीकरा पंचायतीराज संस्थाओं पर फोड़ दिया है। इस अध्यादेश के चलते करीब पचानवे प्रतिशत औरतों से चुनाव लड़ने का हक छिन गया। आदेश इतनी जल्दी लागू हुआ कि लोगों को तैयारी करने और परीक्षा देने का समय ही मिला।
– कई निरक्षर प्रतिनिधि पहले भी चुनाव लड़े हैं। नौरती, कमला और अन्य कई सरपंचों ने अनपढ़ होने के बाद भी अच्छी तरह राजकाज किया है। सरपंचों की मदद के लिए जे.ई.एन. लेखाकार और ग्राम सचिव यानी पूरा पंचायत सचिवालय भी तो है। कई सफल सरपंचों ने राजस्थान उच्च न्यायालय में केस किया है। कहा है कि इस अध्यादेश के कारण वे चुनाव नहीं लड़ पाएंगी।
– यह आदेश बराबरी का हक छीनता है। अदालत में उच्चतम न्यायालय की वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह व अन्य ने पैरवी की। चुनावी अधिसूचना को रद्द घोषित करने की प्रार्थना की। अदालत ने इस मांग को नहीं माना। कहा पहली नजर में यह भेदभाव का मामला नजर तो आता है मगर अदालत जल्दबाजी में फैसला नहीं लेना चाहती। केस अदालत में विचाराधीन है लेकिन सरकार ने विधानसभा में यह कानून पारित कर दिया है।