अनीता भारती चर्चित कहानीकार, आलोचक, व कवयित्री हैं । सामाजिक कार्यकर्ताए दलित स्त्री के प्रश्नों पर निरंतर लेखन हैं करती हैं । युद्धरत आम आदमी के विशेषांक स्त्री नैतिकता का तालिबानीकरण की अतिथि संपादक हैं । अपेक्षा पत्रिका की कुछ समय तक उपसंपादक थी । समकालीन नारीवाद और दलित स्त्री का प्रतिरोध (आलोचना पुस्तकद्ध), एक थी कोटेवाली (कहानी.संग्रह), यथास्थिति से टकराते हुए दलित स्त्री जीवन से जुड़ी कविताएं (संयुक्त संपादन), स्त्रीकाल के दलित स्त्रीवाद विशेषांक की अतिथि संपादक हैं । श्रूखसाना का घरश् तथा श्एक कदम मेरा भीश् (कविता संग्रह), सावित्रीबाई फुले की कविताएँ (सम्पादन), कदम पत्रिका का अम्बेडकरवादी विचारक डॉक्टर तेज़ सिंह पर विशेषांक की अतिथि संपादक हैं ।
पुलिस ने नंगा किया या खुद नंगे हुए? – मसला यह नहीं बल्कि ज़रूरी इस घटना के पीछे का सच जानना है। लेकिन मीडिया तो इसी सवाल पर अटक गई है कि कपड़े आखिर किसने उतारे? मीडिया तो चुप है ही साथ ही महिला आयोग और बाल आयोग की खामोशी भी दलितों के खिलाफ होने वाले भेदभाव की बानगी है। जेल में पिछले पांच दिनों से तीनों औरतों के साथ उनके दूध पीते बच्चे भी बंद हैं। दलितों के मुद्दों पर मीडिया वैसे भी ज़्यादा रुचि नहीं रखता। 2009 से यह पूरा मामला शुरू हुआ। दनकौर थाना क्षेत्र के तहत आने वाले अट्टा गुजरान गांव के इस परिवार के पूर्वजों को साढ़े आठ बीघा ज़मीन पट्टे में मिली थी। यह ज़मीन तीन भाईयों के बीच बंटी हुई है। पास के एक गांव डेरिन गुजरान में महावीर नाम का गुज्जर जाति का व्यक्ति है। जिसकी नज़र इनकी ज़मीन पर लगातार बनी हुई है। अभी तक वह करीब डेढ़ बीघे ज़मीन पर कब्ज़ा भी जमा चुका है। इसने पहले इनकी ज़मीन पर फूस रखने के नाम पर कुछ जगह मांगी थी। लेकिन बाद में उसने धीरे-धीरे करके डेढ़ बीघा ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया। मगर अब ये लोग इस पूरी ज़मीन से ही दलित परिवार को बेदखल कर कब्ज़ा जमाने की कोशिश कर रहे हैं। इसका विरोध करने पर इन्हें डराया धमकाया जा रहा है। पांच अक्टूबर को भी यही हुआ। ये तीनों भाई खेतों में पानी दे रहे थे। इसी बीच एक व्यक्ति आया उसने बीड़ी मांगी। फिर दूसरा आ गया। वे मोटरसाईकिल की चाभी लेकर उसे ले गए। सात सौ रुपए और मोबाइल भी छीन लिया। इससे पहले भी वीरा नाम का एक व्यक्ति था जो दलित बनकर इन्हें परेशान करता था जबकि वह गुज्जर ही था।
जब यह घटना घटी तो यह परिवार लूटपाट की रिपोर्ट लिखवाने थाने पहुंचा। मगर पुलिस ने लूटपाट की जगह चोरी की रिपोर्ट लिखने की बात कही। दलित परिवार के विरोध जताने पर डांट फटकार कर भगा दिया। दो दिन तक ऐसे ही डांट डपटकर ये लोग भगाए जाते रहे। आखिर में थक हारकर तीनों भाई और उनकी पत्नियां अपने बच्चों समेत न्याय की गुहार लगाने और लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए थाने के सामने बैठ गए। पचास साल के सोमपाल, उनकी पत्नी हरवंती, सुनील गौतम, उनकी पत्नी रीता छोटे-छोटे दो बच्चों समेत, छोटे भाई की पत्नी बबीता अपने एक साल के बच्चे के साथ धरने पर बैठी। दनकौर थाने के एस.एच.ओ. प्रवीण कुमार यादव ने इन लोगों को वहां से हटाने की कोशिश की। उनके साथ धक्का मुक्की की। औरतों के कपड़े भी खींचे। इस बात से नाराज़ दलित परिवार ने कपड़े उतारकर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। मगर इस दलित परिवार ने कपड़े क्यों उतारे? बिना यह जाने बहस कपड़ों तक सिमट गई। दरअसल यह परिवार दबंगों की हिंसा का शिकार तो था ही, साथ ही पुलिस की अनदेखी के मिलेजुले असर से उपजी हताशा और विरोध का प्रतीक है, दलित परिवार द्वारा उठाया गया यह कदम। 7 तारीख से पूरा परिवार जेल में बंद है। तीनों भाई, उनकी पत्नियां और और इनके तीन बच्चे। एक बच्ची दो महीने की, दूसरी डेढ़ साल की और एक बच्चा एक साल का है। पुलिस ने इस परिवार पर सरकारी कामकाज में बाधा डालने, हथियार छीनने जैसी कानूनी धाराएं लगाई हैं। जिस जगह यह परिवार धरने पर बैठा था वहां के आसपास के दुकानदारों ने अश्लीलता फैलाने की रिपोर्ट दर्ज कराई है।
इन लोगों के रिश्ते में चाचा लगनेवाले एक व्यक्ति ने बताया कि हम डी.एम., एस.डी.एम. से मिले। मगर कुछ नहीं हुआ। 12 अक्टूबर को इन लोगों ने डी.एम. आॅफिस के सामने धरना देकर औरतों और बच्चों को फौरन रिहा करने की मांग की। इस पूरे मामले में शामिल एस.एच.ओ. समेत दूसरे पुलिसवालों को बर्खास्त करने की मांग भी की है। हालांकि अब धीरे-धीरे इस मामले को लेकर पूरा दलित समाज एकजुट हो रहा है।