डाक्टर मीरा शिवा मेडिकल डाक्टर हैं। जन स्वास्थ्यए महिलाओं के स्वास्थ्यए खाद्य और पोषण सुरक्षा जैसे मुद्दों पर लंबे समय से काम कर रही हैं। इनका मानना है कि खाने के हक का सीधा संबंध सामाजिक और जेंडर न्याय से है। वह हेल्थ एंड इक्यूटी इन सोसायटीध् थर्ड वर्ड नेटवर्क की कोआर्डिनेटर हैं। डाइवर्स वुमेन फार डाइवर्सिटी संस्था की संस्थापक और इसकी स्टीयरिंग कमेटी की सदस्य हैं।
औरतों को, उसमें भी खासतौर पर ग्रामीण औरतों को, स्वास्थ्य सेवाएं आसानी से नहीं मिलती हैं। ऐसे में स्वास्थ्य सेवाओं का सरकारी बजट बढ़ना चाहिए न कि घटना। स्वास्थ्य सेवाओं में जी.डी.पी. का केवल 1.2 प्रतिशत ही खर्च होता है। मगर 2014-2015 के बजट में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का बजट बीस प्रतिशत और एकीकृत बाल विकास (आई.सी.डी.एस.) योजना का बजट पचास प्रतिशत तक कम हुआ है।
न जाने कितनी औरतें बच्चा पैदा करने के दौरान मर जाती हैं। भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में स्वास्थ्य सेवाओं का बजट बढ़ाए जाने की मांग लगातार बढ़ रही है। सरकार को चाहिए कि वह औरतों और बच्चों के लिए ज़रूरी जीवन रक्षक दवाएं उपलब्ध कराएं। खासतौर पर गर्भवती महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सेवाएं चैकस करने की ज़रूरत है। हमारे देश में आज भी मातृ मृत्यु दर बहुत ज़्यादा है। करीब बीस प्रतिशत औरतों की मौत का कारण खून की कमी या फिर लगातार खून बहते रहना है। इन औरतों को बचाने के लिए सुरक्षित प्रसव की सुविधाएं उपलब्ध कराना, प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मचारियों की मौजूदगी बढ़ाना और गर्भवती महिलाओं की देखभाल की सुविधा उपलब्ध कराना ज़रूरी है।
धान की खेती करने वाली औरतें घंटों पानी भरे खेत में झुककर काम करती हैं। कमर दर्द तो ऐसे में आम बात है। लेकिन पानी में घंटों भीगे रहने का कारण पैरों में ज्यादातर औरतों को कई तरह की त्वचा संबंधी बीमारियां और संक्रमण हो जाते हैं। लेकिन इस पर किसी की नजर कभी नहीं जाती। सरकार को चिंता है दवा कंपनियों की, जहरीले रासायनिक पदार्थ बेच रही कंपनियों की। कीटनाशक और खरपतवार नाशक भी ऐसे ही रासायनिक जहर हैं जो लगातार हमारी सेहत को खराब कर रहे हैं। इनके प्रयोग के कारण फसलों पर इतना जहरीला असर पड़ रहा है कि कई औरतों का गर्भपात हो जाता है। कई बच्चे शारीरिक या मानसिक अक्षमता के साथ पैदा हो रहे हैं।